कॉर्पोरेट प्रशासन के सिद्धांत परम्परागत बौद्धिक ज्ञान की भांति प्रतीत होते हैं।
ये इस बात का बोध कराते हैं कि ये सिद्धांत केवल किसी भी कंपनी की आर्थिक
सुदृढ़ता के लिए ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए भी बहुत ही आवश्यक उपकरण
है। हालाँकि, सुशासन की पद्धतियों के कार्यान्वयन की स्थिति भिन्न-भिन्न
कंपनियों, देशों और क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न स्वरुप की होती है। कंपनियों की संख्या
में हो रही वृद्धि का कारण आज कंपनियों द्वारा स्वैच्छिक रुप से पहल को
अपनाना है जिससे सभी घटकों - ग्राहकों, शेयरधारकों और अन्य सभी हितधारकों
के साथ संबंधों में सुधार आता है। लेकिन किसी कंपनी के साथ बने संबंधों के
ताने-बाने के केन्द्र बिंदू के रुप में 'कॉर्पोरेट विवेक' का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान
होता है। अपने इसी विवेक के कारण कार्य दशाओं, पर्यावरणीय रणनीतियों और
समुदायिक आवश्यकताओं के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर कंपनियों के
कार्य करने की पद्धति एक-दूसरे से भिन्न होती है।
वैश्विक पदचिह्न स्थापित करने की लालसा रखने के कारण निगमित कंपनियों ने
न केवल अपने आकार का विस्तार किया है बल्कि महत्वाकांक्षा को भी पर लगाए
हैं। इसी के चलते भारत में सुशासन मानदंडों को बहुत अधिक महत्व दिया जाने
लगा है। निवेशक स्वेच्छा से भली-भांति विनियमित कंपनियों को प्रीमियम का
भुगतान करते हैं। अच्छे सुशासन की एक अच्छी बात यह होती है कि कम लागत
के संसाधनों के साथ-साथ बेहतर मूल्यांकन तक पहुँच बनती है। भारतीय
नियामक ढांचे द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि हितधारकों के हितों की
अच्छी तरह से रक्षा हो, हालाँकि, अच्छे शासन की मुख्य जिम्मेदारी की बात किसी
संगठन के भीतर की बात होती है, न कि उसके बाहर की कोई बात।
एक प्रभावी कॉर्पोरेट का प्रशासनिक ढांचा लचीले स्वरुप का होना चाहिए ताकि
अपने मूल्यों और नैतिक मूल्यों के संबंध में अपनी अडिगता बनाए रखते हुए
बाजार की गतिशीलता के अनुरुप वह स्वयं को ढाल सके। एक विशिष्टता के रुप
में सुशासन संबंधी प्रक्रियाओं के निरुपण के लिए और इन्हें कार्यान्वित करते
समय, पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ जांच और संतुलन के प्रभावी तंत्र को
सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- कॉर्पोरेट सुशासन रिपोर्ट
- प्रकटीकरण – सूचीबद्धता संबंधी विनियम
- सतर्कता तंत्र
- सहायक कंपनी की मेटीरियलिटी निर्धारण नीति
- स्वतंत्र निदेशक, जिन्हें प्रशिक्षित किया गया