Page 11 - संगम - चेन्नई क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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सगम - ततीय स�रण / �सतबर - 2025
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सपादकीय
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प्र�क श� का अपना इितहास होता ह I ज� लन वाला प्र�क श� अपन िनिहत अथ अथवा अथ� म अपन आप
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को सहज महसस करता ह और िनिहताथ म प्रयोग की अप�ा भी रखता ह I श� का इतर अथ प्रयोग “अधों का
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अधा” वाली ��ित पदा करता ह I श�ों का अबझ प्रयोग, िमठाई म नमक िमलान क समान होता ह और इसस े
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न कवल श� उपादयता की �ित होती ह अिपत श� - साम� पर भी कठाराघात पड़ता ह I अिभनव प्रयोग क
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नाम पर िकसी भी उ��� �ान को पोिषत तो नहीं िकया जा सकता I स�त क �ापक व�ािनक �ाकरण आधार
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तथा भारतीय भाषाओं क सम�त योगदान स िनिमत, िवपल िहदी भाषा भडार को य ही ह� म लन की भल तो
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िब�ल नहीं की जा सकती I आप इस श� स�ान भी कह सकत ह I
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अबोध बालक �� गलितया करता ह, वहीं िवषय क जानकार को उ�ीं त्रिटयों क �लए माफ नहीं िकया जाता I
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इस य भी कह सकत ह िक ��-अ�� म भद, बोध-अबोध क कारण होता ह I अब इसी बात को िहदी भाषा पर
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भी लाग कर सकत ह I पकी फसल की, क�ी फसल स �ादा दखभाल करनी होती ह I कहना न होगा िक बाद
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म की गई त्रिट पहल की स�ण महनत पर पानी फर सकती ह I
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िहदी भािषयों को कहन और बोलन म अतर को गहराई स सोचना पड़गा I �लखना और कछ भी �लख दना, म �
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ख़ासा फक होता ह I िवषय क जानकार िवषय का �जतना अिहत कर सकत ह, िवषय न जानन वालों स िवषय
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क उतन अिहत का डर नहीं रहता I जान-बझ कर िकया गया क� और भलवश �ए खन म अतर को तो सभी
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समझत ह I
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