Page 10 - संगम - द्वितीय अंक
P. 10
सपादकीय
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िन ल अ ान, उ ान स कहीं अिधक पिव होता ह I य भी ओस चाटन स कभी ास
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नहीं बझती और कब तक बसा खयों क सहार दौड़ को जीतन का म मन म पाल बठ रहग I
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अनवाद क सहार कायालयों म छपन को लालाियत कायालयी सािह , राजभाषा का लशमा
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भी भला न कर सकगा I भाड़ पर इधर उधर स खरीद िति त लखों स कायालयों म राजभाषा
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की सम पजी तो तयार न की जा सकगी I आकड़ों क सहार राजभाषा की बल िकतनी
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ऊचाइया छ सकगी, यह बात आशातीत हो सकती ह, परत इसकी वा िवकता भयावह ही
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थित अभी हाथों स पर नहीं, लिकन िवचारणीय अव ह I राजभाषा की सम क िलए
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तनात राजभाषा अिधक रयों को भी अपराध म नहीं िकया जा सकता I कब तक मानिसकता
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को बदलन का रोना रोया जाता रहगा I अतत िकसान को य ही खत जोतना पड़ता ह I
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आज अकला चना भाड़ फोडन म असमथ और अश ह I ा हम डड क बल पर चलन की
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आदत न छोड़ सकग I राजभाषा पखवाड़ा क थान पर क िदवस िह ी िदवस बनान क
िलए एकला चलो िस ात की समसामियक आव कता िवचारणीय ह I
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