Page 15 - Mumbai-Manthan
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                                                         









                                                                         अच ना दरबान
                                                                         उ.  .(सिचवीय)
                                                                              क.स.4693
                       म    न ही परी आई   धरतीपर |
                                            ँ
                           ँ
                                                 ै
                               े
               पता ह मुझे थोडही वष  म ,जाना ह क हपर ||धृ||
                     ै
                 माँ िपता ने उगली पकड़कर उठना िसखाया,
                              ं
                         हाथ पकड़कर राह  दखाई |

                             वो बेटी क  िज दगी,
                     माँ िपता का आशीवा द बन गई ||१||



                                            ू
                        दो चोटी  कताबे  कल जाना ,
                          करते करते व  िनकालना,
                     बाबुल का घर छोड़ने का व  आया |
                            े
                     माँ कह बेटी मायक क  परव रश को,
                                       े
                  हमेशा याद रखना कह  भूल न जाना ||२||



                                                                                   े
                            िबदाई क  माँ िपता ने,                            पती क  ेमसे आज म ,
                          वीकार  कया ससुराल का |                            संसार सुख पाने लगी |

                                                                                              े
                             हाथ छोड़ िपता का,                               ब े  ए पर मायक क ,
                           साथ  दया पती  ने ||३||                             याद आने लगी ||४||



                                                                            लेकर मनमे ये  सवाई,
                                                                           चलो वापस कर सुनवाई |
                                                                                          े
                                                                               बेटी बेटी होती ह, ै

                                                                             भले ही करो िबदाई |
                                                                             फल  दए ससुराल को,
                                                                              ू
                                                                        जड़ तो मायक छोड़ आयी ||५||
                                                                                      े

                                                                                                             13
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