Page 16 - Mumbai-Manthan
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                                                



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            महारा  क ठाणे िज़ले म  वारली जाित क आ दवािसय  का िनवास ह। इस आ दवासी जाित क  कला ही
                                                     ै
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            वारली लोक कला क नाम से जानी जाती ह। यह जन जाित महारा  क दि ण से गुजरात क  सीमा तक
            फली  ई ह। वारली लोक कला  कतनी पुरानी ह यह कहना क ठन ह । कला म  कहािनय  को िचि त
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             कया गया ह इससे अनुमान होता ह  क इसका  ारभ िलखने पढ़ने क  कला से भी पहले हो चुका होगा
            ले कन पुरात व वे ा  का िव ास ह  क यह कला दसवी शता दी म  लोकि य  यी। इस  े  पर
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            िह द, मुि लम,पुत गाली और अं ज़ी शासक  ने रा य  कया और सभी ने इसे  ो सािहत  कया। स हव
            दशक  से  इसक   लोकि यता  का  एक  नया  युग   ारभ   आ  जब  इनको  बाज़ार  म   लाया  गया।
                                                                 ं
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            वारली कलाकितयाँ िववाह क समय िवशेष  प से बनायी जाती थ । इ ह शुभ माना जाता था और

            इसक िबना िववाह को अधूरा समझा जाता था।  कित क   ेमी यह जनजाित अपना  कित ेम वारली
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                                                                                               ृ
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            कला म  बड़ी गहराई से िचि त करती ह। ि कोण आकितय  म  ढले आदमी और जानवर, रखा  म
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            िचि त हाथ पाँव तथा  यािमित क  तरह िब द और रखा  से बने इन िच   को मिहलाएँ घरम  िम ी
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            क  दीवार  पर बनती थ  ।
            एक िवशेषता इस कला म  यह होती ह  क इसमे सीधी रखा कह  नजर नह  आएगी। िब द से िब द ही
                                                                                                          ु
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            जोड़ कर रखा ख ची जाती ह। इ ह  क सहार आदमी,  ाणी और पेड़-पौध  क  सारी गितिविधयाँ
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                                ै
             द शत क  जाित ह। िववाह, पु ष,   , ब े, पेड़-पौधे, पशुप ी और खेत - यह  िवशेष  प से इन
            कलाकितय  क िवषय होते ह। सामािजक गितिविधय  को गोबर-िम ी से लेपी  ई सतह पर चावल क
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            आट क पानी म  पानी िमला कर बनाए गए घोल से रगा जाता ह। सामािजक अवसर  क अित र
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             दवाली, होली क उ सव  पर भी घर क  बाहरी दीवार  पर चौक बनाए जाते ह। यह सार  योहार खेत

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            म  कटाई क समय ही आते ह इसिलए इस समय कला म  भी ताजे चावल का आटा इ तेमाल  कया जाता
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            ह। रगने का काम अभी भी पौध  क  छोटी-छोटी तीिलय  से ही  कया जाता ह। दो िच   म  अ छा
                                                                                         ै
            खासा अंतर होता ह। एक एक िच  अलग अलग घटनाएँ दशा ता ह ।
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                                                                                        
                                                                                          
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