Page 40 - तुतारी
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बढ़ा  आ वजन - चेतावनी                          ाने र जी. चौधरी
                                                                                        उप  बंधक (आई.टी.)


                                                   े
                                               आलख  मेर  अनुभव  पर  आधा रत
                                                        े
                                                                        े
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                                                                                                          ु
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             "कछ  लोग  जीवन  म   जी वत  रहने  क   लए  खाते  ह  जब क  कछ  खाने  क   लए  जीते  ह"  और   ायाम  क   कमी,  कछ
             हद  तक  आज  क   जीवन  शैली  हो  गई  ह। ै


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                                                                              ै
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             लोग   ा   पर   ान  नह   द  रह  ह।  लोग   को   ा   क   याद  तभी  आती  ह  जब  उ    कसी  बीमारी  का  सामना
                         ै

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             करना  पड़ता  ह।  और  वह   ृ त  तब  तक  रहती  ह  जब  तक  वे  बीमारी  से  बाहर  नह    नकल  पाते  ह  और  उ   वह   ृ त

                                         ै

              फरसे  कवल  तभी  वा पस  आती   ह  जब  वे   फर  से  बीमार  हो  जाते  ह।  म   भी  इस  तरह  क   सोच  से  अछता  नह   था।
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                                                                                               ू
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             मुझे  दो  साल  पहल  आईसीयू  म   भत   कराया  गया  था  जब  मै   डगू  से  बीमार  हो  गया  था।  मेरी   टल स  कम  हो  गई
                                                                                              े
                                                                          े
                                                      े
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             थ ।  भल  ही  हर  कोई  मेर  साथ  था,  ल कन  म   अकला  था।  मेरा  शरीर  अकल  बीमारी  से  लड़  रहा  था।  एक  चीज  जो
                                  े
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                                                                            े
             मुझे  सता  रही  थी  वह  था  मेरा   ा I   जसे  म ने  अब  तक  अनदखा   कया  था।  अगर  म न  समय  रहते  अपने   ा
                                                                                      े
                                                                  े
             का  ान रखा होता, तो मुझे आईसीयू म  रहने क  नौबत नह  आती। मै जानता था  क रोग  तकारक श    कतनी
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             मह पूण   ह,  ल कन  मुझे  पता  तब  चला  जब  म   खुद  बीमार  पड़  गया।  उस  समय,  म   सोचने  पे  मजबूर  हो  गया  क
                                                                                              े
                                                         े
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                                                                                           े
             रोग  तकारक  श    (  तर ा   णाली)  को  बढ़ावा  दने  क   लए   ा   कया  जाना  चा हए।   मेर   टल स   गर  रही
                                                                                                 े
             थी, मुझे बाहर से खून चढ़ाने क  ज रत थी। यह  ा कम था जो डॉ र ने मुझे बताया  क मेरी शुगर 288 हो गयी
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                                                                                                      े
             ह।  मेरी  मान सकता  अभी   बगड़  रही  थी,  और  इसक   ती ता  मुझे  महसूस  भी  हो  रही  थी।  अब  अपने  जीवन  क  बाक
                                                                                               े
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             बचे  उ   क   लए  शुगर  क   गो लयां  लने  क  बस   वचार  से  ही  मेरा  मन  अ  र  हो  गया  था।   म   पहल  से  ही  चार  वष
                                                                                    ै
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                                                                                                 े
             से  बी.पी.  क   गो लयां  खा  रहा  था।  यह  बीमारी  का  च  ूह  ह   क   जसे  भी  बीपी  होती  ह  उसे  आगे  चलक  डाय बटीज
             हो जाता ह और  फर वह  दल क  बीमारी क तरफ चला जाता ह और म  इस च  म  नह  फसना चाहता था, ल कन
                                                                                       ं
                                                                                                       े
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             जाने  अनजाने  म   म   इस  च   म   फस  गया  था।  यह   बलकल  उसी  तरह  से  था  जैसे  अ भम   च  ूह  म   आ  तो  गया
                                                                                        ु
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             मगर  बहार  जानेका  रा ा  मालम  न  होने  क   वजह  से  मारा  गया।  मेर   दमाग  म   वचार का  का  भवंडर  मंडरा  रहा  था

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             और  आ खरकार  चार   दन   क  बाद  मेरी   ड   रपोट  अ ी  आई  और  मेर   टल स  बढ़  गए  थे।  म   डगू  से  तो  बाहर

                                                                            े
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                                     े
              नकल  गया  ल कन  मधुमेह  क   चपेट  म   आ  गया  था।  अ ताल  से  जाते-जाते  डॉ र  ने  वजन  कम  करने  क
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             नसीहत  द  डाली  ल कन  यह  नह   बताया   क  कसे।  ऐसा  इस लए     क  आपका  बढ़ा   आ  वजन,  बढ़ा   आ  पेट  और
                                                                                                  े
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             शरीर  क   अ त र   चब   आपको  बीमार  करने  क   लए   ज ेदार  होती  ह।  म   समझ  गया   क  डॉ र  क  श   मेरी
                                                     े
             शुगर क  ओर इशारा कर रह थे।
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                                                            37
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