Page 9 - आवास ध्वनि
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मिहैंदाी मेंं रोज़गृार: उपृ�ब्ध अ�संर और भाा�ी संंभाा�नााए ँ
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आजा लगाभागा आठ देशक की स्वातत्रीता क बोादे जाबो �में हिं�देी चारो-पाँच संौ वषाक फ़ाारोसंी भााषाा सं �में त्रीस्त औरो आतनिकत रो�े
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मेंं रोोज़गाारो क अवसंरों परो मिवचारो करोत �ं तो देख संकत �ं तथाा लगाभागा देो संौ वषां सं अग्रेेज़ी ना �मेंं भायांभाीत एँव भ्रमिमेंत
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निक अन्य अनाशासंनां की तुलनाा मेंं हिं�देी मेंं रोोज़गाारो क अवसंरो निकयांा हुआ �ै। इसं भायांचक्र को तोड़ना की आवश्यकता �ै।
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निकसंी भाी तरो� सं कमें ना�ं �ं। हिं�देी ना अपनाी क्षेमेंता औरो शजि� अबो तो इसं भ्रमेंजााल सं निनाकलना की भाी प्रौबोल आवश्यकता
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संे, रोाष्ट्ीयां-अतरोरोाष्ट्ीयां स्वाीकमित तथाा उपादेयांता संे, प्रौयांोगा- �ै निक अग्रेेज़ी �ी आधुनिनाक औरो संजिशलिक्षेत �ोना का प्रौमेंार्ण-
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अनाप्रौयांोगा की संंभाावनााओंं तथाा लोकहिंप्रौयांता सं औरो संवाकजिधक पत्री �ै।
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अपनाी सं�जाता तथाा बोोधगाम्यता सं रोाष्ट्ीयां-अतरोरोाष्ट्ीयां छमिव
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तथाा प�चाना बोनााई �ै। संंपूर्णक भाारोत मेंं, संभाी रोाज्यों को परोस्परो मिहैंदाी मेंं रोज़गृार प्रामि� काी अहैंधताए ँ
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जाोड़ना वाली संंपक औरो संंवादे स्थााहिंपत करोना वाली भााषाा, मिवश्व क निकसंी भाी देश मेंं ‘उपाजिध’ नाौकरोी यांा रोोज़गाारो की
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अबो हिं�देी बोना गाई �ै। अतः हिं�देी मेंं आजाीमिवका, रोोजाी-रोोटी गाारोंटी ना�ं �ोती। �मेंारोे यांवाओंं ना संामेंान्यतः यां� मेंाना लिलयांा
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की संंभाावनााएँ औरो कामें-काजाी अवसंरो अबो प्रौचरो मेंात्रीा मेंं �ै निक स्नाातक, यांा स्नाात्कोोत्तरो उपाजिध प्रौाप्त करोना सं नाौकरोी यांा
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उपलब्ध �ो रो�े �ं। अग्रेेज़ी का कहिंत्रीमें देबोदेबोा अबो कमें �ोना े आजाीमिवका मिमेंलनाी �ी चाहिं�एँ। ऐसंा भाी संोचत �ं निक उपाजिध
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लगाा �ै तथाा भाारोतीयां भााषााओंं तथाा हिं�देी की शजि�यांं सं मिवश्व प्रौाहिंप्त क बोादे नाौकरोी मिमेंलना की सं�जा स्वाीकमित �ोनाी चाहिं�एँ।
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अबो भाली-भााँमित परिरोजिचत �ो रो�ा �ै। मिवज्ञााना औरो वालिर्णज्यो संत्य यां� �ै निक भाारोत एँक बो�त रोाष्ट् �ै। जानासंंख्या अत्यजिधक
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मेंं, अथाकशास्त् औरो अथााकजाकना मेंं, जिचनिकत्सा औरो न्यायां मेंं, मिवजिध �ै औरो संंसंाधना अत्यंत कमें। ऐसं मेंं हिं�देी क क्षेेत्री मेंं रोोज़गाारो
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औरो प्रौबोंधना मेंं, इजाीनिनायांरिरोगा औरो प्रौौद्योोमिगाकी मेंं, मेंनाोरोंजाना प्रौाप्त करोना क लिलएँ �मेंं अपना को तयांारो करोनाा �ोगाा। यांहिंदे
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औरो खेल-जागात मेंं अबो हिं�देी औरो हिं�देी-संवी अपनाी प�चाना �मेंं हिं�देी जिशक्षेर्ण क क्षेेत्री मेंं जाानाा औरो हिं�देी अनावादेक बोनानाा
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बोनाा रो�े �ं। प्रौमितयांोगाी परोीक्षेाओंं मेंं, संंचारो एँव संूचनाा जागात �ै, ‘हिं�देी अजिधकारोी’ यांा ‘रोाजाभााषाा अजिधकारोी’ बोनानाा �ै, हिं�देी
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मेंं अबो हिं�देी अनाप्रौयांोगा क संभाी आयांामें उद्घाानिटत �ोना लगा �ं। जिसंनामेंा मेंं यांा मिवज्ञाापना की देुनिनायांा मेंं जाानाा �ै तो �मेंं अपनाी
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हिं�देी भााषाा अपना आप मेंं �ी अबो ‘भााषाा-प्रौौद्योोमिगाकी क रूप मेंं क्षेमेंता औरो देक्षेता का प्रौामेंालिर्णक परिरोचयां तो देनाा �ी �ोगाा।
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स्थााहिंपत �ोती जाा रो�ी �ै। मेंौखिखक औरो लिलखिखत भााषाा क रूप अतः अपलिक्षेत �ै निक –
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मेंं, संाहिं�त्यित्यक औरो संाहिं�त्येत्तरो अनाशासंनां क क्षेेत्री मेंं, अन्य 1. हिं�देी क चारों कौशलं को – अथााकत ‘हिं�देी बोोलनाा’ ‘हिं�देी
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अनाेक भाारोतीयां भााषााओंं की शब्द-संंपदेा संे, अथाकछटाओंं संे, लिलखनाा’, ‘हिं�देी पढ़नाा’ औरो ‘हिं�देी संनानाा’ – मिवजिधवत औरो
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बोोलिलयांं-उपबोोलिलयांं सं तथाा अनाप्रौयांोगा क संभाी आयांामेंं क संाजिधकारो आत्मसंात करोनाा प्रौथामेंतः अत्यंत आवश्यक
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उद्घााटना सं हिं�देी अबो आत्मनिनाभाकरो, संमेंथाक औरो संश� हिंदेखाई तथाा अनिनावायांक �ै।
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देना लगाी �ै। हिं�देी, अबो औपचारिरोक भााषाा क रूप मेंं, शब्द-
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संंपदेा औरो शब्दावलिलयांं क संंकलनां क रूप मेंं, उच्च जिशक्षेा 2. इन्हीं कौशलं क आजिधकारिरोक ज्ञााना सं उच्चारोर्ण की
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क मेंाध्यमें क रूप मेंं, रोाजाकाजा की भााषाा अथााकत रोाजाभााषाा शुद्धता, वतकनाी की मेंानाकता, पठनाीयांता क अभ्याासं तथाा
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क रूप मेंं, बोंक, बोीमेंा, मिवत्त तथाा वालिर्णज्यो आहिंदे क्षेेत्रीं क श्रवर्ण – कला मेंं प्रौाप्त बोोधात्मकता �ी �मेंं आजाीमिवका
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कायांं को संाधना वाली संश� भााषाा क रूप मेंं अपनाी प�चाना की रोा� परो चलना क लिलएँ संश� बोनााएँगाी। हिं�देी क क्षेेत्री
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औरो निनारोंतरो मेंजाबोूत करोती हिंदेखाई दे रो�ी �ै। अबो मिवषायां क मेंं यांहिंदे जाीमिवकोपाजाकना की संंभाावनााओंं को संाकारो करोनाा �ै
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मिवशषाज्ञा औरो भााषााओंं क मिवशषाज्ञा मिमेंल करो हिं�देी कायांान्वयांना तो हिं�देी भााषाा औरो संाहिं�त्य मेंं, हिं�देी प्रौयांोगा औरो अनाप्रौयांोगा
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की संभाी संंभाावनााओंं को उजाागारो करोना का संुलभा प्रौयांासं करोत े मेंं, हिं�देी की संजाकनाात्मक-शजि� को प�चानाना एँव परोखना े
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हिंदेखाई दे रो�े �ं। मेंं, अहिंभारुजिच पदेा करोनाी �ोगाी।
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हिं�देी क मिवषायां मेंं यां� भ्रमें प्रौायांोजिजात रूप मेंं फलायांा गायांा निक 3. हिं�देी मेंं रोोज़गाारो प्रौाप्त करोना का ‘संंकल्प’ अत्यंत आवश्यक
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हिं�देी क्लि�ष्ट �ै यांा देुरू� �ै, लोकहिंप्रौयां ना�ं �ै, अनाहिंदेत �ै जाबोनिक �ोता �ै। यां� संंकल्प निनामिवकल्प �ोनाा चाहिं�एँ। अजाकना की
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जागा मिवहिंदेत �ै निक संंसंारो की कोई भााषाा ना कठिठना �ोती �ै तरो� मेंछली की आख परो आख लगााना की कला मिवकजिसंत
औरो ना �ी संरोल। भााषाा कवल परिरोजिचत �ोती �ै यांा अपरिरोजिचत। करोनाा अत्यंत आवश्यक �ै। निकसं हिंदेशा मेंं, निकसं क्षेेत्री
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