Page 5 - तुतारी
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संपादक क  कलम से





               य  सा थय ,

                                                ै
             यह  मेर   लए  अ  यंत  आन  द  का   वषय  ह   क  हडको  मुंबई   े ीय  काया लय  क    ह  दी   गृह  प  का  ‘’तुतारी’’  का
                    े
                                            ै
             दस ू रा  अंक   का शत  होने  जा  रहा  ह।   इस  अंक  क   लए  अपनी  कलम  चलाते   ए  मुझे  एक  अनूठी   स  नता  का
                                                       े
             आभास  हो  रहा  ह।
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                                                                                             ै
             राजभाषा   ह  दी  म   काय   करना  हमारा  नै तक  कत   य  ही  नह   ब    संवैधा नक  दा य  व  भी  ह।

                                   े
             मुंबई   े ीय  काया लय  क  अ धकारी  और  कम चारी  राजभाषा  संबंधी  ग त व धय   म   बढ़-चढ़कर  भाग  लते  ह
                                                                                                        े
                                                           े
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                                                                                          ं
              जसका  म ने     य    प  से  अनुभव   कया  ह।  म ने  दखा  ह   क  सभी  लोग    तयो गताओ  म   बड़ी  ही  त  मयता

             और  उ  साह  से  सहभा गता  करते  ह।
                                      े
                                                                     ँ
             मेरा   व  वास  ह   क  आने  वाल  समय  म   यह  प  का  और  अ धक  उचाईय   तक  पहचेगी  एवं  मुंबई   े ीय  काया लय
                          ै
                                                                                 ॅं ु
                                                                    ँ
                                           े
              ारा  और  सु  चपूण   जानका रय   क  साथ  इसे  वृहद    तर  तक  प चाने  का   यास   कया  जाएगा।
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              े ीय  काया लय  प रवार  क  सभी  सद  य   को  तथा  उन  सभी  को   ज  ह ने  इस  प  का   काशन  म   अपना
                                                                                     े
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                 े

             उ  लखनीय  योगदान   दया,  को  म   हा दक  ध  यवाद  दता  ह।   राजभाषा  काया   वयन  क  अनुपालन  एवं   ह  दी  को
                                                               ॅं ू
             बढ़ावा  दने  और  उसका   चार- सार  करने  क    ज  मेदारी  हम  सभी  क   ह।   आइए,  हम  सब   मलकर   ह  दी  को
                                                                            ै
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             बढ़ावा  दने  क   लए  हमार  द नक  काय   म    ह  दी  को    यादा  से    यादा   योग  म   लाने  का  संक  प  ल।
                                     ै
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             मंगल  कामनाओ  स हत।
                                                                                           वी. टी. सु म णयन
                                                                                       े ीय  मुख एवं संपादक









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