Page 46 - आवास ध्वनि
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स्वाधरीनता आदोलन में ष्हदरी लोकगरीतों का योगदान
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धीितला आदोलि क दौरलाि लोकगीतों जड़ी ‘रोजमरला्य’ की गवतववशध क रूर् में आतला िै जबनक
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कला ववश्षण कलािी रोचक रिला िै | भशक्त कलाल र्िले गवतववशध से लोक की र्िचलाि संभव िोती थी| क्रम
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क बलाद इसमें कछ ि कछ अवरोध उत्पन्न िोते िी रिे िैं| कला र्ि उलट जलािला, मिषुष्य कला सीधी र्लाँव खड़ला िो जलािला
र्द्यहर् कछ रीवतमक्त कववर्ों क मलाध्यम से लोकगीत िी िै। इसे भलारतेंदषु र्षुग से अब तक दखला जला सकतला िै।
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अभी भी आगे िी बढ़ रिे थे नक आधनिक कलाल क ”2 इन्हीं ब्स्वतर्ों क बीच भलारतेंदषु कला उदर् हुआ | र्ि जला
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र्षुिजला्यगरण कलाल क प्रभलाव से भशक्तकलाल की धलावमकतला सकतला िै नक रीवतकलालमें शजस तरि की ववचलारधलारला और
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और रीवतकलाल की और जिसलाधलारण द्लारला कद्र में आ गर्ला। उसमें उत्पन्न भलाविलाएअर्िला दम तोड़ रिी थी। ऐसे समर् में
िॉ. रलामस्वरूर् चतषुववेदी कला कथि िै नक “जलागरण िे िवजलागरण कला जन्म हुआ। स्वलाधीितला आदोलि क कववर्ों
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अध्यलार्कों लोक से जोड़ला, लोक को रलाष्टीर्तला से ”1 िे िर्ी ववचलारधलारला को रखला और इसकला सूरिर्लात भलारतेंदषु िे
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स्वलाधीितला से र्िले क लोग अशधकतर संस्लार और ववविलास नकर्ला।
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र्र आधलाररत िोते थे| उिकी र्िचलाि उिक व्यशक्तत्व क भलारतेंदषु द्लारला रशचत ‘कवव वचि सधला’ में उन्होंिे भलारतवष्य की
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आधलार र्र दखी जला सकती थी| प्रकलाश शषुक् िे किला िै ववकशसत करिे क ललए अिेक प्रकलार क उर्लार्, ववचलार और
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नक “आधनिक कलाल में र्िली बलार ‘लोक’ कला प्रयिक्षगत मित्व को कववतलाओं क सलाथ-सलाथ लोकगीतों में भी व्यक्त
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गण स्टि हुआ शजससे लोग जीवि क ववववध कला र्तला नकर्ला | लोकगीतो कला गलाँव-गलाँव में प्रचलार प्रसलार नकर्ला -
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चलतला िै अब लोग र्िलाँ सलामलान्य आदमी क जीवि से
वि खूि किो नकस मतलब कला, शजसमें उबलाल कला िलाम ििीं।
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वि खूि किो नकस मतलब कला, आ सक दश क कलाम ििीं।
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वि खूि किो नकस मतलब कला, शजसमें जीवि, ि रवलािी िै!
जो र्रवश िोकर बितला िै, वि खूि ििीं, र्लािी िै!
खूनरी हस्ाक्षर / गोपालप्रसाद व्ास
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