Page 50 - आवास ध्वनि
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ब्रह्म में भ्रम
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रतीर् ववद्लाि ‘शब्द’ को ‘ब्रह्म’ अथला्यत् ईविर कला रूर् कलाललदलास ि उष्ट क स्लाि र्र उट् कि हदर्ला| इससे र्त्नी को
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मलािते िैं। ‘शब्द’ को ‘िलाद’ भी किते िैं, शजसकला ‘ब्रह्म’ उिकी मूख्यतला कला र्तला चल गर्ला| क्रोधवश उसिे उन्हें घर से
की तरि कोई आकलार ििीं िोतला| वि भी उसकी तरि सव्यरि बलािर निकलाल हदर्ला थला।
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व्यलार्क िोतला िै। इसललए शब्द कला अशद्ध उच्लारण सीधला- इस प्रकलार िमलारी छोटी-सी चूक क कलारण बहुधला अर्ररिलार््य
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सीधला ईविर कला अर्मलाि िै।
ब्स्वतर्लाँ उत्पन्न िो जलाती िैं| इसीललए संत कबीर िे किला िै-
अथ्यवलाि शब्द की अर्लार शशक्त िोती िै। र्हद मंरि कला उच्लारण
बोलरी एक अमोल है, जो कोय बोलल जाडन|
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अशद्ध नकर्ला जलाए, तो वि सषुिल दिे क स्लाि र्र वविलाश तक
ष्हय तराजू तौलल क, तब मुख बाहर आडन||
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कर दतला िै। किला जलातला िै नक कम्भकण्य अर्िी तर्स्यला क िल
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क रूर् में वरदलाि मलाँगते समर् इद्रलासि मलाँगिला चलाितला थला, नकत षु वैज्लानिक भी इस बलात को मलािते िैं नक शब्द सौरमंिल में ववचरण
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उसक मि से ‘इ’ क स्लाि र्र ‘नि’ अथला्यत ‘निद्रलासि’ शब्द निकल करते रिते िैं। िमें अर्िे शब्दों कला प्रर्ोग सोच-समझकर करिला
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गर्ला| र्ररणलामस्वरूर् वि छि मिीिे सोिे लगला। चलाहिए। र्थलासंभव शब्द कला शद्ध उच्लारण करक वलातलावरण को
दूवषत िोिे से बचलािला चलाहिए!
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कई बलार अशद्ध शब्द क प्रर्ोग से अथ्य कला अिथ्य िो जलातला िै और
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लेिे क दिे र्ड़ जलाते िैं। किला जलातला िै नक मिलाकवव कलाललदलास कछ तथलाकशथत उदलारवलाहदर्ों कला कििला िै नक शब्दों की
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वववलाि से र्व्य मिलामूख्य थे। उिकला वववलाि धोखे से एक ववदषुषी शद्धतला क ललए क्ों अड़, बलात समझ आिी चलाहिए, शब्द चलािे
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रलाजकमलारी ववद्योत्तमला से करला हदर्ला गर्ला| वववलाि क उर्रलांत जब अशद्ध क्ों ि िों, नकत र्हद उदलार बििला िै, तो ्ज़रूरतमंदों की
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दोिों र्वत-र्त्नी एक कमरे में बैठ थे, तो ऊट की आवलाज सषुिकर मफ़्त सेवला कीशजए, सड़क र्र र्ड़ असिलार् घलार्ल की सिलार्तला
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