Page 47 - आवास ध्वनि
P. 47
“प्ाररी झूलन पठारों झुडक गयो बदरा | ताहू पै महँगरी काल रोग र्वस्ाररी;
ओंिों सुरुख चूनरर तापै श्याम चदरा || ष्दन-ष्दन दून दुःख ईस डट हा हा ररी |
रे
रे
दखो र्बसुररी चमक बरसै अदरा | सब क ऊपर डटक्क्स की आफत आई;
रे
रे
रे
‘हररीचंद’ तुम र्बन ष्पय अर्त कदरा |”3 हा हा ! भारत दुदशा न दखरी जाई |”5
रे
द्ध
भलारतेंदषु क अललावला उिक सभी समकलालीि कववर्ों िे अर्िी इस कलाल में कववर्ों िे जि-भलाषला को अर्िलाकर अर्िे ववचलार
े
े
े
रचिलाओं में लोक सलाहियि र्रख वण्यि दखला जला सकतला िै| उसमें प्रस्त कर जि उर्र्ोगी सलाहियि क स्वरूर् को भी
े
षु
ृ
चौधरी बद्रीिलारलार्ण, प्रतलार्िलारलार्ण वमश्, बलालकष्ण भट्ट, गौरवलास्तवित नकर्ला िै। िॉ. रलामववललास शमला्य िे किला िै नक
षु
षु
ं
षु
बलालमकद गप्त आहद िे लोकगीतों, लोकोशक्तर्ों शतकों “भलारतेंदषु र्षुग की सबसे बड़ी खूबी र्ि िै नक वि जितला
आहद लोकर्रक ववषर्ों की रचिला से लोक सलाहियि की कला सलाहियि िै|उिकी भलाषला ि दरबलारों की िै, ि सरकलारी
मित्तला को शसद्ध नकर्ला िै | अिसरों और कचिरी क मषुिरररों की | वि जितला की भलाषला
े
े
िै, शजसमें अयिशधक ग्लाम संर्क क शचिि भले िो, िलागररक
्य
जीवि में घनटत-घटिलाओं र्र आधलाररत किलावतें मषुिलावरे
ं
और लोकोशक्तर्लां क सलाथ-सलाथ र्िेललर्लाँ भी इि कववर्ों बिलाओ शसगलार और नटर् टॉर् कला अभलाव िै | उस र्र अवधी
े
षु
िे लोकजीवि और मलािस को िी आधलार बिलाकर प्रस्त और ब्रज भलाषला की गिरी छलार् िै |”6
े
नकर्ला िै| भलारतेंदषु और उिक सलाशथर्ों िे जिलाँ एक और भलारतेंदषु कला भलाषला क प्रवत सद्भलाव थला अर्िी संस्ृवत सभ्यतला
े
सलाहित्यिक गीत ललखे विीं दूसरी और वववलाि-ववदला और और उसक ववकलास क प्रवत शचवतत और मिि भी करते रिते
ं
े
े
े
े
जेविलार क समर् क समर् दी जलािे वलाली गलारी [ गलाली ] कला थे| इस र्षुग में मक्तक कलाव्य कला िी रूर् सव्यथला वबखरला
षु
े
े
ं
भी उल्ख वमलतला िै | वीरेंद्रिलाथ हद्वेदी िे किला िै नक “ हुआ थला| भलारतेंदषु िे अर्िे र्षुग में अग्जी शलासि कला तो
भलारतेंदषु र्षुग में लोक तत्वों कला समलावेश अर्िी स्वलाभलाववक ववरोध नकर्ला िी थला सलाथ िी समकलालीि लेखकों िे ववदशी
े
ववशेषतलाओं क सलाथ हुआ र्ि र्षुग लोक-सलामवग्र्ों से वस्ओं क प्रवत भी अर्िला आक्रोश अिेक रूर्ों में लोगों क
षु
े
े
े
ू
ँ
र्ण्यतर्ला समृद्ध िै | कथलाए, लोकोर्दलािों से मंनित िैं | मलाध्यम से व्यक्त नकर्ला थला -
ववववध भलावों से र्षुक्त र्दों में लोक तत्वों की प्रेरणला िै और “मारकीन मखमल र्बना चलत कछ नरेष्ह काम |
ु
रे
े
ववशेष करक लोकगीतों की सज्यिला तो अर्िे मूल रूर् में परदसरी जुलहान क मानंहु मानंहु भय गुलाम ||
रे
रे
रे
ृ
िी अलंकत िै | मषुिलावरे, किलावतें और र्िेललर्लां भलारतेंदषु वस्त् कांच,कागज,कलम,सचरि खखलौन आष्द |
े
र्षुग की ववषर्लाहभव्यशक्त क प्रलाणतत्व आधलार िी िैं | इसक आवत सब परदस सौ,डनतहीं जहाजाडन लादरी ||”7
े
रे
अवतररक्त भलारतीर् जीवि क ववविलास, रीवत-ररवलाज, व्रत-
े
े
े
षु
े
र्व्य-उत्सव आहद क शचरिण तो ववषर् क्रम में स्वत: स्ररत इस प्रकलार द्दी र्षुग में भलाषला क स्वरूर् में र्ररवत्यि गठि
े
े
िोते गर्े िै | इसललए र्ि कििला नक र्ि लोक र्क्ष की और व्यलाकरण क प्रवत िवीितम क समलावेश से अर्िला
ं
दृहटि से बड़ला समृद्ध िै, गलत ििीं िोगला। ”4 भलारतेंदषु िररचिंद्र मित्व िै | इस र्षुग में र्रंर्रलावलादी और स्वच्दवलादी दोिों
े
े
े
को जिलाँ एक और अर्िी भलाषला दश और उसक ववकलास क िी प्रकलार क लोकगीतों कला ववकलास हुआ| मिलावीर प्रसलाद
े
षु
े
ै
ृ
प्रवत गिरला लगलाव थला विीं दूसरी और मिंगलाई, अकलाल और हद्वेदी क र्षुग में आदश्य, िवतक, शद्ध-वत्यिी एवं संस्त
े
ं
े
कर क ववशेष में बहुत दोषलारोर्ण हदखलाई दते थे | भलारतेंदषु सलाहियि क संस्लारों कला प्रर्ोग कर अिेक रचिलाए ललखी
े
िे सरकलार की तीखी आलोचिला करते हुए किला िै नक – जलािे लगी |
वैहदक र्षुग में कई कववर्ों िे प्रलाचीि कलम से भी
ं
रे
“अग्रेज राज सुख साज सज सब भाररी;
लोकगीतों कला मित्व और रचिला की सयििलारलार्ण,
पै धन र्वदश चलल जात इहै अर्त ख्ाररी | बद्रीिलाथ भट्ट, श्ीधर र्लाठक िे कजली, ठ षु मरी, िोली और
रे
47