Page 19 - आवास ध्वनि
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संगाोत्री मिववा� निनाषाेध, ग्रे�र्ण काल मेंं भाोजाना निनाषाेध, यांज्ञा का   मिवश्व की निकसंी भाी भााषाा मेंं उपलब्ध ना�ं �ै| संंस्कृृत वर्णकमेंाला
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                 में�त्त्, देलिक्षेर्णायांना मेंं मेंत्य श्रयांस्कृरो क्यों ना�ं, देलिक्षेर्ण की   मेंं प्रौत्येक इकाई ध्वनिना क लिलएँ एँक अक्षेरो निनाश्वि�त �ै औरो
                                                        ू
                 ओंरो पाँव करोक क्यों ना�ं संोनाा, निनात्य स्नााना, संयांक नामेंस्कृारो,   प्रौत्येक अक्षेरो कवल एँक मिवशषा ध्वनिना क लिलएँ �ी प्रौयां�
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                                                                                                                   ु
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                 हिंपतरों का श्राद्ध, संोल� संंस्कृारो क्यों आहिंदे अनाेक मेंान्यताओंं   �ोता �ै| इसंीलिलएँ संंस्कृृत मेंं जासंा बोोला जााता �ै, वसंा �ी
                                                                                                                 ै
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                 एँव जाीवना जाीना क निनायांमेंं क पीछ भाी मिवज्ञााना का आधारो �ै,   लिलखा जााता �ै| यां� इसं भााषाा औरो  इसंकी लिलहिंप की संवाकजिधक
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                 जिजासं  आजा  �में  भाूल  गाएँ  �ं|  (�ॉ.  संब्धिच्चदेानादे  श�  2013)     उल्लीेखनाीयां मिवशषाता �ै।
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                 प्रौामितभा आचायांक चार्णक्यो द्वाारोा रोजिचत ‘अथाकशास्त्’ मेंं धमेंक, अथाक,
                                                                                                                 े
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                 रोाजानाीमित, कटनाीमित, दे�नाीमित, रोाजास्वानाीमित, यांुद्धनाीमित आहिंदे का   आजा  संारोा  मिवश्व  भाारोत  की  ओंरो  आशाजानाक  नाज़रों  सं  देख
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                 वर्णकना निकयांा गायांा �ै।                           रो�ा �ै| निना�यां �ी इक्कीीसंवं संदेी भाारोत की �ोगाी तथाा संभाी
                                                                                                         े
                                                                      भाारोतवाजिसंयांं की प्रौमितभाा औरो संंकल्पशजि� क परिरोर्णामेंस्वारूप
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                 औरो अत मेंं, प्रौाचीना भाारोत का वैज्ञाानिनाक, आध्यात्यित्मक औरो   भाारोत पना: ‘संोना की जिचनिड़यांा’ एँव ‘मिवश्वगाुरु’ क गाौरोवशाली
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                 संांस्कृृमितक गाौरोव-गााना जिजासं भााषाा मेंं निकयांा गायांा, उसं देवभााषाा   पदे को प्रौाप्त करो लेगाा| इसंक लिलएँ �मेंं संमेंस्त देशवाजिसंयांं मेंं
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                 संंस्कृृत औरो उसंकी लिलहिंप देवनाागारोी की वैज्ञाानिनाकता की चचाक   ‘भाारोत-बोोध’ को जागाानाा �ोगाा औरो �में ऐसंा करोना मेंं अवश्य
                                                                                                             े
                 निकएँ मिबोनाा यां� शोधालेख अधरोा �ी रो�ेगाा| मिवश्व की संवाकजिधक   संफल �ंगाे।
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                 वैज्ञाानिनाक भााषाा संंस्कृृत मेंं स्वारों औरो व्यूजानां का वगाीकरोर्ण �ो,
                                                                                                                    ु
                 संंजिध औरो संमेंासं �ो, धातुओंं सं शब्द-निनामेंाकर्ण प्रौहिंक्रयांा �ो यांा     u डॉ॰ रवि� �मेंा ‘मेंधीपृ’
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                                                                                                                ध
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                                                                                                               ं
                 उपसंगाक-प्रौत्ययां का प्रौयांोगा �ो यांानाी प्रौत्येक चरोर्ण मिवज्ञााना परो   एँसंोजिसंएँट प्रौोफसंरो एँव अध्यक्षे,
                                                                                     ं
                                                                                                         े
                 आधारिरोत �ै| स्वारो औरो व्यूजानां का ऐसंा वैज्ञाानिनाक वगाीकरोर्ण   हिं�देी मिवभाागा, श्री रोामें कॉलजा ऑफ कॉमेंसंक,
                                      ं
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                 औरो उच्चारोर्ण स्थााना क आधारो परो तानिकक मिवभााजाना संंभावत:                      हिंदेल्लीी मिवश्वमिवद्योालयां
                                                                                                                  19
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