Page 17 - आवास ध्वनि
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(500 ईसंा पवक) को ‘पाइथाागाोरोसं प्रौमेंयां’ की खोजा करोना वाला पाँचवं शताब्दी मेंं आयांकभाट्ट क संमेंयां मेंं पाटलीपत्री मेंं खगाोलीयां
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भाारोतीयां हिंत्रीकोर्णमिमेंमिततज्ञा क�ा जााता �ै| वहिंदेक गालिर्णत का वेधशाला थाी, जा�ाँ आयांकभाट्ट, भाास्कृरोाचायांक तथाा अन्य
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लो�ा तो आजा संारोी देुनिनायांा मेंानाती �ै। वैज्ञाानिनाकं ना अनाेक खगाोलीयां शोध निकएँ| गाुरुत्त्ाकषाकर्ण की
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खोजा न्यूटना सं लगाभागा �ढ़ �ज़ारो वषाक पवक भाारोतीयां वैज्ञाानिनाक
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खगाोल मिवज्ञााना क क्षेेत्री मेंं तो भाारोतीयां वैज्ञाानिनाकं की भाास्कृरोाचायांक ना करो ली थाी औरो ‘पृथ्वीी गाोल �ै’ यां� भाी उन्हींना े
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उपलब्धिब्धयांाँ संचमेंुच मिवत्यिस्मृत करोना वाली �ं| खगाोल मिवद्योा को जिसंद्ध करो हिंदेयांा थाा| भाास्कृरोाचायांक क ग्रेथा – ‘जिसंद्धांतजिशरोोमेंलिर्ण’
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वदे का नात्री क�ा गायांा �ै| प्रौाचीना काल सं �ी खगाोल वदेांगा मेंं गाुरुत्त्ाकषाकर्ण का उल्लीेख मिमेंलता �ै।
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का में�त्त्पूर्णक भाागा रो�ा �ै| ऋग्वेेदे, शतपथा ब्रााह्मीर्ण आहिंदे ग्रेथां
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मेंं मिवहिंभान्न नाक्षेत्रीं, चद्रामेंासं, संौरोमेंासं, मेंलमेंासं (पुरूषाोत्तमें आचायांक कर्णादे परोमेंार्ण मिवज्ञााना क जानाक मेंाना जाात �ं| उन्हींना े
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मेंासं), उत्तरोायांर्ण, देलिक्षेर्णायांना, भााचक्र आहिंदे का मिवस्तृत वर्णकना पश्वि�मेंी अर्णशास्त्ज्ञा जाॉना �ाल्टना सं संंकड़ं वषाक पवक बोतायांा
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मिवद्योमेंाना �ै| यांजावदे क 18 व अध्यायां मेंं यां� उल्लीेख मिमेंलता निक ‘द्राव्यू क परोमेंार्ण �ोत �ं|’ ऋमिषा अगास्त् द्वाारोा रोजिचत
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�ै निक चद्रामेंा संयांक क प्रौकाश सं आलोनिकत �ोता �ै| भाारोतीयां ‘अगास्त् संंहिं�ता’ तथाा अन्य ग्रेथां क आधारो परो प्रौख्यात
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काल गार्णनाा मिवश्व मेंं संवाकजिधक वैज्ञाानिनाक एँव प्रौाचीना �ै। भाारोतीयां वैज्ञाानिनाक रोाव संा�बो वझ ना मिवद्योत क मिवहिंभान्न
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प्रौकारों का वर्णकना निकयांा एँव अगास्त् संंहिं�ता मेंं मिवद्योत द्वाारोा
संंपूर्णक ब्राह्मीां� को 360 के आधारो परो 27 नाक्षेत्रीं, 12 रोाजिशयांं इलेक्ट्रॉोप्लानिटगा करोना का मिववरोर्ण भाी हिंदेयांा।
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मेंं मिवभााजिजात करोनाा, आकाश मेंं तारों की आकमित क आधारो परो
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रोाजिशयांं का नाामेंकरोर्ण, नाक्षेत्रीं क नाामेंं क आधारो परो में�ीनां धात मिवज्ञााना की श्रष्ठाता का प्रौमेंार्ण �ै - हिंदेल्लीी मेंं कतबोमेंीनाारो
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का नाामेंकरोर्ण, ग्रे�ं की मिवशषाताओंं क आधारो परो उनाका क पासं ब्धिस्थात लौ� स्तभा – ‘मिवष्ण स्तभा’|1600 सं अजिधक वषाक
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नाामेंकरोर्ण, जासं धीमेंी गामित सं (शनाै:-शनाै:) चलना क आधारो बोीत जााना परो भाी इसंमेंं जागा ना लगानाा मिवश्व क धात वैज्ञाानिनाकं
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परो शनिना यांा मेंदे नाामें रोखनाा, संौरो में�ल मेंं संबोसं बोड़ा तथाा क लिलएँ मिवस्मृयां का कारोर्ण बोनाा हुआ �ै| रोामेंायांर्ण, में�ाभाारोत,
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मेंानाव क लिलएँ कल्याार्णकारोी ग्रे� �ोना क कारोर्ण बो�स्पमित परोार्णं, श्रमित ग्रेथां मेंं संोनाा, चाँदेी, ताँबोा काँसंा, संीसंा, लो�ा,
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को गाुरु नाामें देनाा आहिंदे, ग्रे�ं का रोंगा, मेंानाव परो प्रौभााव, उनाक निटना आहिंदे धातुओंं का वर्णकना मिमेंलता �ै| इतनाा �ी ना�ं चरोक,
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उपग्रे�ं की संंख्या आहिंदे का तानिकक एँव वैज्ञाानिनाक आधारो परो संश्रुत, नाागााजाकना आहिंदे ना स्वार्ण, रोजात, ताम्र, लो�ा, अभ्रक, पारोा
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मिववेचना, धरोती सं संयांक एँव अन्य ग्रे�ं की देूरोी का संटीक ज्ञााना, आहिंदे क औषाधीयां गार्णं को प�चानाकरो जिचनिकत्सा �ेत भाी
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मेंगाल ग्रे� को भाौमें यांा भाूमिमेंसंुत क�करो धरोती सं अलगा हुआ उनाका उपयांोगा निकयांा।
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अश बोतानाा, चद्रामेंा की गामित क आधारो परो श� पक्षे औरो रोसंायांना शब्द क मेंूल मेंं रोसं �ै| प्रौाचीना ग्रेथां मेंं रोसं का एँक
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कष्ण पक्षे, पलिर्णमेंा औरो अमेंावस्याा का वर्णकना; वषाक, देशाब्द, अथाक पारोदे भाी �ै| रोसंायांना मिवज्ञााना मेंं मिवहिंभान्न खनिनाजां का
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शताब्दी, सं�स्रोाब्दी सं लेकरो यांगा, में�ायांगा, कल्प तक की अध्ययांना निकयांा जााता थाा| रोसंायांना मिवज्ञााना क क्षेेत्री मेंं नाागााजाकना,
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कालगार्णनाा, आकाश मेंं ध्रुुव तारोा, संप्त ऋमिषा तारोामें�ल आहिंदे वांगाभाट्ट, गाोमिवदेाचायांक, रोामेंचद्रा, संोमेंदेव आहिंदे अपना संमेंयां क
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का प्रौामेंालिर्णक मिववेचना जासंी अनाकानाेक उपलब्धिब्धयांाँ भाारोतीयां प्रौजिसंद्ध रोसंायांना वैज्ञाानिनाक मेंाना गाएँ �ं| नाागााजाकना द्वाारोा रोजिचत
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खगाोल मिवज्ञााना की श्रष्ठाता का अकाट्यू प्रौमेंार्ण �ं। ग्रेथा ‘रोसंरोत्नााकरो’ क आठ अध्यायांं मेंं सं कवल चारो �ी अबो
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