Page 16 - आवास ध्वनि
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भाारत-बंोधी : �ैज्ञााकिनाका उपृ�ब्धिब्धयाँ


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                  ‘बोोध’ देो शब्दं क मेंेल सं बोनाा �ै| प�ला शब्द �ै भाारोत औरो
                  देूसंरोा शब्द �ै बोोध।  इसं मिवषायां परो गा�ना चचाक करोना सं पवक
                                                            े
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                  यां� आवश्यक �ै निक शीषाकक मेंं आएँ देोनां शब्दं परो निकजिचत
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                  मिवचारो करो लिलयांा जााएँ।
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                  संंस्कृृत-हिं�देी शब्दकोश क अनासंारो भाारोत का अथाक �ै – भारोत
                  सं संंबोंध रोखना वाला यांा भारोत की संंताना| (वामेंना जिशवरोामें
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                  आप्टेे 2007) ‘भाारोत’ शब्द भाा+रोत देो शब्दं क मेंेल सं बोनाा �ै|
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                  ‘भाा’ का अथाक �ै - प्रौकाश, आभाा, कांमित, देीहिंप्त, चमेंक| (रोामेंचद्रा
                                                                ै
                  वमेंाक 2007)। यां� ‘भाा’ अन्य कई शब्दं मेंं भाी मिवद्योमेंाना �ै, जासं  े
                       े
                  संयांक क पयांाकयांवाची क रूप मेंं भाानाु, भाास्कृरो आहिंदे| इसंी प्रौकारो
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                  आभाा, मिवभाा, प्रौभाा आहिंदे शब्दं मेंं भाी ‘भाा’ का अथाक देीहिंप्त, चमेंक
                  यांा प्रौकाश �ी �ै।
                                                                                  ं
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                                                                      ‘भाारोत  औरो  हिं�देू  धमेंक  क  प्रौमित  आस्थाा  व्यू�  करोत  हुएँ
                  वास्तव  मेंं  यां�  ‘भाा’  अथाात  प्रौकाश  प्रौतीक  �ै  -  ज्ञााना  का,   मेंॉरोीशसंवाजिसंयांं ना अपना देश मेंं स्थााहिंपत निकएँ जिशवलिलगा को
                                       क
                                                                                                                 ं
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                  संकारोात्मक संोच का, संद्भााव का, देवत्व का| इसंका मिवलोमें   तरो�वाँ  ज्योोमितलिलगा  घोमिषात  करो  हिंदेयांा  �ै,  निकत  जिशवपरोार्ण
                                                                       े
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                  अधकारो प्रौतीक �ै – अज्ञााना का, नाकारोात्मक संोच का, संमेंस्त   मेंं कवल बोारो� ज्योोमितलिलगां का �ी उल्लीेख मिमेंलता �ै|); 51
                  बोरोाइयांं  का,  देानावत्व  का|  इसंीलिलएँ  क�ा  जााता  थाा  निक   शजि�पीठ औरो संमेंस्त संंस्कृृत वांग्मयां (4 वदे, 6 वदेांगा, 6
                                                                                                                े
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                  रोाहिंत्री क अधकारो मेंं मिवहिंभान्न आसंरोी, देानावी औरो मिवनााशकारोी   देशकना, 18 परोार्ण, 108 उपनिनाषाद् क अमितरिरो� संत्री, स्मृृमित, ब्रााह्मीर्ण
                                                                                   ं
                                                                       ं
                  शजि�यांाँ संहिंक्रयां �ो जााती �ं, जाबोनिक भाास्कृरो क उदेयां क संाथा   ग्रेथा, आरोण्यक ग्रेथा, रोामेंायांर्ण, में�ाभाारोत, श्रीमेंद्भाागावत गाीता,
                                                             े
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                  शुरू �ोना वाल हिंदेना मेंं संजानाात्मकता, आशावादेी दृहिंष्ट, शभा   जाो वास्तव मेंं में�ाभाारोत क भाीष्म पवक का भाागा �ै, बोौद्ध औरो
                                                                       ै
                                                                               ू
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                  भाावं का उदेयां भाी �ोता �ै| ‘भाारोत’ शब्द मेंं प्रौयां� देूसंरोे अश   जाना ग्रेथा, संरोसंागारो, रोामेंचारिरोतमेंानासं, गाीतांजाली, कामेंायांनाी,
                  ‘रोत’ का अथाक �ै - लीना, संंलग्न, लगाा �ोनाा, निनामेंग्न �ोनाा आहिंदे|     गाोदेाना  आहिंदे)  मिमेंलकरो  भाारोत  का  भाौगाोलिलक-संांस्कृृमितक
                                                                                        े
                  इसं प्रौकारो ‘भाारोत’ शब्द का अथाक �ै - ज्ञााना रूपी प्रौकाश मेंं लीना   स्वारूप संुनिनाश्वि�त करोत �ं| इनाका संामेंान्य ज्ञााना भाारोत-बोोध
                                                                                 ं
                  लोगां का देश।                                       का अनिनावायांक अगा �ै।
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                                                                                                           े
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                  भाारोत मेंं प्रौकाश क आहिंदे स्रोोत संयांक को अत्यजिधक में�त्त् हिंदेयांा   भाारोत-बोोध  का  अनिनावायांक  अगा  �ै  –  भाारोत  क  गाौरोवशाली
                               े
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                  गायांा �ै| �मेंारोे पवकजा ऋमिषा-मेंुनिनायांं, जाो वास्तव मेंं वैज्ञाानिनाक था  े  अतीत  मेंं  निनाहिं�त  वैज्ञाानिनाक  उपलब्धिब्धयांाँ|  मिबोनाा  इन्हीं  ठीक-
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                                                                                                 ू
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                  औरो नागारों सं देूरो प्रौकमित क प्रौांगार्ण मेंं आश्रमें बोनााकरो हिंदेना-  ठीक जााना �मेंारोा भाारोत-बोोध अधरोा �ी रो�ेगाा| सं�स्रों वषां
                                   ृ
                                                                                               ु
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                  रोात वैज्ञाानिनाक शोधं मेंं व्यूस्त रो�त थाे, उन्‍ �ंना संयांक नामेंस्कृारो,   मेंं अजिजात भाारोतीयां मिवज्ञााना-जिसंध का वर्णकना कछ पष्ठां मेंं करोनाा
                                                                                                           ु
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                  संयांक जिसंद्धांत,  संौरो में�ल, संौरो वषाक, संयांक संंक्रांमित आहिंदे का   एँक असंंभाव कायांक �ै| आइएँ �मेंारोे पवकजां की कछ वैज्ञाानिनाक
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                  गा�ना अध्ययांना, मिवश्लेेषार्ण-मिववेचना करोक जाीवना मेंं संयांक, उसंक   उपलब्धिब्धयांं का संंलिक्षेप्त ज्ञााना प्रौाप्त करो ल। ं
                                                                 े
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                                      क
                  प्रौकाश, उसंसं प्रौाप्त ऊजाा, ताप, जाीवना उपयांोगाी निकरोर्णं क   गालिर्णत क क्षेेत्री मेंं भाारोत की उपलब्धिब्धयांं सं आजा संंपूर्णक मिवश्व
                                                                                                        े
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                                                                                     े
                  में�त्त् को स्थााहिंपत निकयांा।                     अवगात  �ै|  शून्य  सं  लेकरो  नाौ  तक  अक,  देशमेंलव  पद्धमित,
                                                                                                    ं
                                                                       ं
                                                                      अकगालिर्णत,  बोीजागालिर्णत,  रोेखागालिर्णत,  हिंत्रीकोर्णमिमेंमित  आहिंदे
                  देूसंरोा शब्द �ै - बोोध| इसंका तात्पयांक �ै - ज्ञााना,  जाानाकारोी,
                                                                                                     े
                                                                                          े
                  संमेंझ आहिंदे| अत: ‘भाारोत-बोोध’ शीषाकक का अथाक हुआ - भाारोत   मिवश्व को भाारोत की �ी देना �ं| भाारोत क प्रौमेंुख गालिर्णतज्ञां मेंं
                   े
                  क संंबोंध मेंं ज्ञााना यांा जाानाकारोी।             बोौधायांना,  कात्यायांना,  ब्राह्मीगाुप्त,  भाास्कृरोाचायांक,  आयांकभाट्ट,
                                                                      लीलावती, श्रीधरो, रोामेंानाुजााचायांक आहिंदे शामिमेंल �ं| बोौधायांना
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