Page 56 - चिरई - अंक-3
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अंततमे िंस्ार
अंत तमे ि ंस् ा र
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वह हाथ िो हमहें आशीवा्शद दते थे वह आि शांनत से लेट ह ै ं
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वह चेहरा िो खुशी से भरा था वह आि दद से भरा ह ै
चारो ओर सन्ाटा फला ह
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दवांगी चक्रर्तती
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पौधे और फ ू लहें मुझा्श गई ह िुपुत्ी श्ी अर्भजीत चक्रर्तती
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आकाश महें काले बादल छा गए ह ै िहायक मेहाप्रर्िक (पररयोजना)
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दखते न दखते लोग दादािी क मृत शरीर को ले िा रह ह ै
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सब क चेहर पर दुख भरा हुआ ह ै
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अननगनत लोगों क आखों महें ऑंसु भर हुए ह ै
व ि ंत
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आंखे खुलती ही सुनी मधुर पुकार,
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कहू कहू ध्वनन सहहत कोयल का राग।
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वसंत आ गया, प्रकनत कहती,
सुनहरा पवन सौम्य स्पश्श दती।
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गुलाल अबीर से आि धरती रगीन,
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उमंग-उत्ाह क साथ नाचे मेरा हदल।
निेहा दाि चारों तरफ खुजशयां छाई हुई अद्य,
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िुपुत्ी स्वरूप दाि आम की कली और पलाश क मध्य।
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उप प्रर्िक (आई टी)
56 अंक-3 : अप्रैल 2022 - मार््च 2023 "सभ्य संसार क सार पवषय हमार सादहत् में आ जाने की ओर हमारी
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सतत् चेष्टा रहनी चादहए।" - श्ीधर पाठक