Page 53 - चिरई - अंक-3
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                                                                                           े
                                                                            एक बार झांक क दखो ना
                         इशान सिन्ा
                                                          एक
                      िुपुत् डॉ तुिार क ु मेार सिन्ा      एक                   खोई-खोई आंखों महें,
                       उप मेहाप्रर्िक (आई टी)
                             ं
                                                                                           े
                                                                                              े
                                                                            एक बार झांक क दखो ना
                                                                                     े
                                                              ार
                                                          र्
                                                          र्ार               अश्ो क सैलाब उमड़ते,
                                                                                पलकों पे मिरायहें,
                                                                            िलन, तपन, बेचैनी बनक,
                                                                                                   े
                                                        झांक                   गालों पर ढुल िाये।
                                                        झांक
                                                                                       े
                                                                                              ं
                                                                            ककतनी पीड़ा उस क्दन महें,
                                                            के
                                                            के              एक बार झांक क दखो ना
                                                                                           े
                                                                                              े
                                                                            सूनी-सूनी आश की खेती,
                                                            े द
                                                            खो
                                                         दखो                  उम्ीद कहॉं अंकराये,
                                                            े
                                                                                             ु
                                                                             नेह, आसरा, बंिर लगते,
                                                            ना ना              सपने क्ा मुस्ाये
                                                                            घोर ननराशा अंतर-मन महें,

                                                                                              े
                                                                            एक बार झांक क दखो ना
                                                                                           े
                                                                              खोने का रखा ही क्ा,

                                                                               कफर भी घात सताये,

                                                                                    े
                                                                              गैरों क स्पश्श मात्र से,
                                                                                दद हरा हो िाए।
                                                                                   ्श







                                  े
        "दहंिी र्चरकाि से ऐसी भाषा रही ह लजसने मारि पवििी होने क कारण                                          53
                          ै
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                                                                                                  ृ
                                                                                          ्ध
                                   ें
            ककसी िब्द का बदहष्कार नहीं ककया।" - राजरिप्रसाि       हडको, क्त्रीय काययालय, कोलकाता करी अर्वार्षिक हहन््दरी गह पहत्का
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