Page 52 - चिरई - अंक-3
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र्ोझ
कभी सोचा ह, ै
जितनी हमारी रफ्ार होनी चाहहए
हम उतना तेि नहीं चल पाते ह, ै
भास्वती सिन्ा
कभी सोचा ह, ै पर्नि डॉ. तुिार क ु मेार सिन्ा
उप मेहाप्रर्िक (आई टी)
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हमारी पीठ पर क्ा-क्ा लदा हुआ ह, ै
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उन ररश्दारों की झुठी आशाएॅं ह, ै
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जिनको लगता ह तुम अगर कामयाब हुए,
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तो उनक काम आओगे,
नहीं हुए तो, वो ‘क्ाइट्स कहॉं से बनाएगहें,
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सब से ज्ादा मिाक वो ही तुम्ह बनाएंगे, अब कफिूल बोझ ले क चलतो हो,
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और लदा हुआ ह एक बोझ सपने भी नहीं दख पाते िो तुम दखना चाहते,
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सामाजिकता का जिस हदन ये बोझ हटा दोगे
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िो िाने अनिाने आपक रास् हिसाईि करती ह, ै जिंदगी शुरू हो िाएगी .....
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और गलत रास् पे भेि क, और कहीं दूर रहियो पर गाना चल रहा ह, ै
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लौटने क दरवािे बंद कर लेती ह, ै हर पल यहां िी भर जियो,
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एक बोझ उन झुठ लोगों का ह, ै िो ह समा कल हो न हो .....
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जिन्ह अंग्ेिी महें फयर वेदर फ्रड्स कहा गया ह, ै
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िो नहीं चाहते आप उनकी सोच से अलग कछ हट कर करो,
क्ोंकक अगर तुम ऐसा नहीं करोगे,
तो तुम तो कफर भी दोस् बना लोगे,
52 अंक-3 : अप्रैल 2022 - मार््च 2023 "कपव संमेिन दहंिी प्रचार क बहुत उपयोगी साधन ह।"
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- श्ीनारायण चतुविी