Page 55 - चिरई - अंक-3
P. 55

काली घटा छाई ह   ै

                                                                                  लेकर साथ अपने यह
                                              काली                              ढ़र सारी खुजशयां लायी ह ै
                                                                                 े

                                                                                       ं
                                                                                   ं
                                                                                  ठिी ठिी सी हवा यह
                                                  घटा                          बहती कहती चली आ रही ह    ै
                                                                                   काली घटा छाई ह   ै

                                                                             कोई आि बरसों बाद खुश हुआ
                       नर्नीता पॉल                                       तो कोई आि खुशी से पकवान बना रहा
                            ं
                     िहायक प्रर्िक (िर्चवीय)
                                                                                   बच्चों की टोली यह
                                                                              कभी छत तो कभी गजलयों महें
                                                                               ककलकाररयां सीटी लगा रह   े

                                                                                   काली घटा छाई ह   ै

                                                                              ज्ों नगरी धरती पर पहली बूंद
                                                                                                    ु
                                                                               े
                                                                              दख इसको ककसान मुस्राया
                                                                                  संग िग भी झूम रहा

                                                                                िब चली हवाएं और तेि
                                                                                आंधी का यह रूप ले रही

                                                                         लगता ऐसा कोई क्ांनत अब शुरू हो रही

                                                                                 छ ु पा िो झूट अमीरों का
                                                                                कहीं गली महें गड्ा तो नही

                                                                               बड़ी बड़ी ईमारत यूॅं िर रही

                                                                                  ु
                                                                              अंकर िो भूमम महें सोये हुए थे
                                                                                महसूस इस वातावरण को

                                                                                  वो भी अब फ ू टने लगे

                                                                                दख बगीचे का माली यह
                                                                                 े
                                                                                    खुशी से झूम रहा

                                                                              और कहता काली घटा छाई ह     ै

                                                                         साथ अपने यह ढ़र सारी खुजशयां लाई ह    ै
                                                                                         े



                                  े
        "दहंिी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूणया मानवता क लिये बहुत बड़ा   हडको, क्त्रीय काययालय, कोलकाता करी अर्वार्षिक हहन््दरी गह पहत्का  55
                                                                                          ्ध
                                                                       षे
                                                                                                  ृ
                        ै
             उत्तरिामयत्व सँभािना ह।" - सुनीपतक ु मार चाटुर्ा या
   50   51   52   53   54   55   56   57   58   59   60