Page 18 - तुतारी
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श शकांत फावड े
सृ बचाओ
ए. एफ (एस जी)
- ल खत रचना
हर ज रत क पू त से आ सृ का नमा ण l
फल , फल से बहलता था पया वरण l
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सृ क सुंदरता मे लगता जैसे वृ खड पहने आभूषण l
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पंछीओक चहकने क आवाजे पडती थी कान मे l
जानवरो का राज था, रहते थे सुकन से जंगलमे l
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हर कोई अपनी जगह खुश था l
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वकास क नाम पर सृ का समतोल बगाड़ता चला गया इसान l
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पहाड, पेड पर कर आ मण l
इसान बन रहा वनाश का कारण l
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इटरनेट क जाल मे पंछी फस गये
पंछीओक आवाज सुनने क लये कान तरस गये l
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मेर भारत क शान मेरा कसान
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हमारा नारा - जय जवान जय कसान l
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बा रश क राह दखता कसान l
कम या ादा , बा रशसे परशान l
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झेल रहा ह भारी नुकसान l
वृ लगाना, उसको बचाना करना
होगा यही काम l
नही तो होगा जल, दष ू ण, गम क सम ा का नमा ण l
जसका आपक जीवन पर होगा द रणाम l
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