Page 31 - तुतारी
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जीवन क  प रभाषा                              कांचन सावंत









                                                                                           उप  बंधक ( व  त)
                                                     -   ल खत रचना
                                                    मजहब  यही   सखाता
                                                             े
                                                    सबको  गल  लगाना।
                                                 इ  सान  को  इ  सान  समझो

                                                  ना  समझो  इसे   खलौना।।


                                                                े
                                               चार   ओर  अंधेरा  भल  ही  हो  घना
                                               सूरज  क   रोशनी  म   ही  ह  जीना।
                                                                    ै


                                           धम ,  जा त,   े ,  भाषा,  घृणा  सब  ख  म  हो

                                           एक  उ  मीद,  एक    येय  जीवन  म   स  त  हो।



                                                    तरगा  हो  तेरी  पहचान
                                                      ं
                                                       े
                                                   हर  दश  का  तू  गव   हो।



                                                ए  मा लक  तुझसे  ही  सीखा  ह  ै
                                                जीवन  म     यार  ही   प रभाषा  ह।
                                                                         ै




















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