Page 32 - आवास ध्वनि
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कभी हिन्ी, कभी हिन्षुस्लािी और कभी हिन्ी मध्य र्षुग में आम   में हभन्न हभन्न सलामलाशजक प्रर्ोजिों क ललए उसमें शैली की हभन्नतला
                                                                                         े
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                                                    ै
         बोल-चलाल की भलाषला क रूर् में उत्तर से दलक्षण तक िली थी।   भी स्वलाभलाववक िै ।
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                              े
         कछ समर् तक दक्क्िी क िलाम से प्रशसद्ध उत्तर भलारत की र्ि   हिन्ी  की  इसी  प्रकवत  क  कलारण  उसमें  सलाव्यदशशक  रूर्  कला
                                                                                                     े
                                                                                   े
                                                                              ृ
         भलाषला दलक्षण में लम्बे समर् तक शलासि, सलाहियि, व्यलार्लार और   ववकलास िो रिला िै। र्िलाँ एक और बलात स्टि करिला आवश्यक िै
                ्य
                               षु
         जिसंर्क भलाषला बिी रिी। मगल शलासि कलाल में र्द्यहर् िलारसी   भलाषला कला ववकलास उसक वलास्ववक प्रर्ोग से िी िोतला िै। भलाषला
                                                                                 े
         को रलाजकलाज की भलाषला घोवषत कर हदर्ला गर्ला र्रन् हिर भी   से िम शजतिी अशधक मलांग करेंगे और उस प्रर्ोग कला शजतिला
                                                   षु
         हिन्ी अर्िे ढग से रलाजभलाषला क रूर् में ववकशसत िोती रिी।   अशधक दबलाव िलालेंगे भलाषला उतिी िी जल्ी अर्िे को समथ्य
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         अकबर, जिलाँगीर को हिन्ी कला अच्ला ज्लाि थला। औरंगजेब की   और समृद्ध बिला लेगी। अतः हिन्ी क उज्ज्ल भववष्य क ललए
                                                                                                           े
                                                                                            े
         र्षुरिी जेबषुहन्नसला हिन्ी में कववतलाए ललखती थी। शेरशलाि सूरी कलाल   िमें  अर्िे  शशक्षण  संस्लािों  कला  मलाध्यम  हिन्ी  करिला  िोगला।
                                 ं
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         क शसक्ों र्र िलारसी/हिन्ी कला प्रर्ोग वमलतला िै। अशधकलांश   आवश्यकतला इस बलात की िै नक िम अर्िी भलावी र्ीढ़ी अथला्यत्
                                                        े
         मरलाठी रलाजलाओं की रलाजभलाषला हिन्ी िी थी। अग्ज जिलाँ अग्जी   बच्ों को बनिर्लादी शशक्षला क स्र र्र िी रलाष्टभलाषला हिन्ी क
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         कला प्रचलार, प्रसलार कर रिे थे विलाँ वि र्ि भी जलािते थे नक हिन्ी   सलाथ जोड़। श्ी बी जी खेर की अध्यक्षतला में गठठत रलाजभलाषला
                                                                       ें
         भलारत की प्रवतनिशध भलाषला िै। अतः उन्होंिे इसे ववकशसत ििीं   आर्ोग (1955) की निशषुकि व अनिवलार््य प्रलाथवमक शशक्षला कला
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         िोिे हदर्ला और अग्जी को भलारतीर् र्र ललाद हदर्ला। जब 1947   मलाध्यम रलाज्यों की प्रलादशशक एवं अतः प्रलातीर् संबंधों क ललए
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                                                                                                           े
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         में भलारत स्वतंरि हुआ तक तब अग्जी दश की शशक्षला संस्लाओं,   हिन्ी रखिे की शसिलाररश र्र कलार्यवलाई ि करक िमिे हिन्ी कला
                                                                                                   े
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         दफ्रों, अदलालतों, ववधलाि सभलाओं में अर्िला प्रभत्व जमला चकी   बहुत अहित कर हदर्ला िै। शशक्षला की समस्यलाओं र्र ववचलार करिे
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         थी। अग्जी की भलाषला संबंधी जो भी िीवत रिी िो, हिन्ी िे अर्िला   क ललए र्ीछ एक उच्स्रीर् आर्ोग बिला थला । ववविववद्यलालर्
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                                                                         े
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         अत्स्त्व  बिलाए  रखला।  स्वतंरितला  क  ललए  जूझिे  वलाले  ववहभन्न   अिषुदलाि  आर्ोग  क  अध्यक्ष  िॉक्टर  कोठलारी  िी  इसक  प्रमख
                                                                             े
                                                                                                              षु
                                                                                                          े
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         प्रलांतों क लोगों क द्लारला ववचलार ववमश्य वमली जली भलाषला में िोतला   थे। इस आर्ोग िे अर्िे ववस्त प्रवतवेदि में एक जगि र्ि भी
                                                                                      ृ
         थला इससे हिन्ी को अयिलाशधक बल वमलला । स्वतंरितला आन्ोलि   ललखला िै “करल में मलर्लालम से भी अशधक, र्षुवक र्षुववतर्ों
                                                                        े
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         की बलागिोर गलांधी जी क िलाथ में थी, गलांधी जी जिमलािस की   हिन्ी र्ढ़ रिे िैं। प्रलारंभ में मझे कछ अजीब सी बलात लगी। भलला
                                                                                    षु
                                                                                        षु
         चेतिला कला र्िचलाि कर दूरगलामी दृहटि रखते थे। इसीललए उन्होंिे   र्ि कसे संभव िै नक अर्िी मलातृभलाषला से भी अशधक हिन्ी किीं
                                                                   ै
         हिन्ी और हिन्षुस्लािी कला प्रचलार नकर्ला और हिन्ी को एक   र्ढ़ी जलाए। र्र विलाँ जलाकर जब र्तला लगलार्ला, तो बलात सिी थी।
         रलाजिीवतक और सलामलाशजक दश्यि प्रदलाि नकर्ला। स्वतंरितला प्रलाहप्त
                                                                       षु
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         क बलाद भलारत क संववधलाि में हिन्ी को रलाजभलाषला कला दजला्य हदर्ला   रलाज्य क कछ वर्शक्तर्ों से जब उसकला कलारण र्ूछला, तो उन्होंिे
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         गर्ला। धलारला 343 (1) में सलाि शब्दों में उल्ख िै नक संघ की   किला शशक्षला कला प्रवतशत भलारत में सब से अशधक िमलारे र्िलाँ िै।
                                                                                                   े
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         रलाजभलाषला हिन्ी और ललहर् दविलागरी िोगी। र्िलाँ र्ि बतला हदर्ला   छोटला रलाज्य िोिे से िौकररर्लाँ कम िैं िौकरी क ललए अशधकलांश
         जलािला उशचत िी िोगला नक दविलागरी ललहर् ि कवल संसलार की   व्यशक्तर्ों को उत्तर भलारत जलािला र्ड़तला िै। हिर वि भलाषला िी क्ों
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         सरलतम ललहर् िै बब्कि सवला्यशधक वैज्लानिक भी िै। इसी धलारला में   ि िम र्ढ़, जो उधर भी कलाम द सक। दूसरे शब्दों में उिकला कििला
                                                                                                       ं
         प्रलावधलाि िै नक भलारतीर् अकों क अन्रला्यष्टीर् रूर् कला िी प्रर्ोग   थला भलाषला वि अशधक चलेगी, शजसकला बलाजलार भलाव ऊचला िोगला “ ।
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                             ं
         नकर्ला जलाए । र्े अक संसलार को भलारत की दि िै और इन्हें संसलार   हिन्ी की वविम्बिला र्िी िै नक शस द्धलांत में र्ि संघ की रलाजभलाषला
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         क अशधकतर दशों िे स्वीकलार नकर्ला िै। संववधलाि में हिन्ी को   िै अतएव भलारत की प्रशलासनिक भलाषला िै र्र व्यविलार में वि
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         रलाजभलाषला कला दजला्य हदर्ला जलािला तलानकक एवं संगत िै। भलारत जैसे   “र्र शलासनिक” भलाषला अशधक िै। भलारतीर् कलार्ला्यलर्ी र्द्धवत में
                                    टि
                                                                                     े
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         ववशलाल दश में भलाषला क स्वरूर् में ववववधतला वमलिला स्वलाभलाववक   जितला और अशधकलारीगण क बीच क्रमशः ववकशसत िोती गई
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                                                                                                           े
         िै। क्षेरिीर् अववमश्ण से हिन्ी में सलामलाशसक संस्ृवत और शैली   दूरी और जि की अशधकलार-वंदिला की गलाथलाओं क र्ीछ भलाषला
                                                                                                      े
         क िए आर्लामों को ववकशसत िोिे कला अवसर वमलतला िै। भलाषला   कला समलाज-शलास्त भी िै। हिन्ी की “र्र शलासनिकतला” कला कलारण
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