Page 28 - आवास ध्वनि
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में मंदपो कला िलाथ बँट़लार्ें’’ ‘अम्ला’ उर्न्यलास में कमलेविर सती प्रथला हुए मसलाहिर’ की िसीबि सलामलाशजक अव्यवस्ला क ववरुद्ध सलाईं
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जैसी कप्रथला क खखललाि आवलाज उठलाते िैं की चलालों र्र र्लािी िर दती िै, ‘तीसरला आदमी’ में वे आशथक
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आशथक, सलामलाशजक एवं रलाजिीवतक अव्यवस्ला क ववरुद्ध अव्यवस्ला क कलारण उत्पन्न हुई ब्स्वत को कखन्द्त करते िै।
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संघष्य:- र्ि तो प्रमलाण शसद्ध िै नक शजसक िलाथ में अथ्य की शशक्त ‘समद्र में खोर्ला हुआ आदमी’ मे कमलेविर धिलालणत करिे वलाली
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िोती िै, विी भलाग्य ववधलातला िोतला िै। जब से स्ती िे कमलािला प्रलारम्भ तलारला को सवला्यशधक सशक्त हदखलाते िैं, ‘कलाली आधी’ क मलाध्यम
नकर्ला िै, वि स्वलावलम्बी हुई िै और सलामलाशजक अव्यवस्ला क से कमलेविर रलाजिीवतक सत्तला प्रलाप्त एवं शशक्त सम्पन्न मलालती
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खखललाि बोलिे लगी िै। ‘गोदलाि’ प्रेेमचंद कला अस्तन्म उर्न्यलास कला वण्यि करते िै ‘आगलामी अतीत’ में चलांदिी उस सलामलाशजक
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िै, उसकी स्ती र्लारि धनिर्ला अशशलक्षत िोिे क बलावजूद र्वत की अव्यवस्ला क खखललाि अर्िला ववरोध व्यक्त करती िै शजसमें वि
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झूटी मर्ला्यदला र्र कठलारलाघलात करती हुई अर्िे र्वत धनिर्ला से वे ‘बेटी-बेटी’ कििे वलाले र्षुरुष क द्लारला बललात्कृत की जलाती िै।
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रुर्ए छीि लेती िै जो वि र्ररवलार की झूठी मर्ला्यदला की रक्षला क जब वि वेश्यला बि जलाती िै, तो उसक ललए र्षुरुष कवल र्षुरुष
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ललए दलारोगला तथला गलांव क िेतलाओं को भेंट चढ़लािला चलाितला िै। िोतला िै। वि नकसी ररश् में ववविलास ििीं करती। इसी उर्न्यलास
में कमलेविर कमल बोस क वेश्यला चलांदिी को वेश्यलाजीवि से
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समलाज में र्लाई जलािे वलाली स्ती-र्षुरुष असमलाितला भी सलामलाशजक मक्त करवलािे क ललए प्रर्लासरत हदखलाते िैं, कमलेविर स्ती र्षुरुष
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अव्यवस्ला कला िी एक भलाग िै शजसे आज की िलारी दूर करिे क समलाितला क र्क्षधर िैं, ‘विी बलात’ में खजलांची सलािब स्ती-र्षुरुष
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ललए तत्पर िै। ‘बूँद और समद्र की कन्यला अर्िे अशधकलारों की असमलाितला वलाली सलामलाशजक अव्यवस्ला क ववरुद्ध प्रश्न उठलाते
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प्रलाहप्त क ललए नकए जलािे वलाले संघष्य को इि स्वरलांे में अहभव्यशक्त िैं- ‘‘औरत को अर्िी शजन्गी जीिे कला िक क्ों ििींे िै? िम
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दती िै, ‘‘जिलाँ आर् और आर्क र्वत कमलािे लगेंगे तब इस तरि कब तक उसे बेइज्त करते रिंेगे? आदमी औरत बदल ले तो
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कला स्वलामी-दलासर्ि कला िलातला तो रि ििीं जलार्ेगला, दोिों बरलाबरी ठीक! औरत आदमी बदल ले तो गलत! वलाि! क्ला मैथमेनटक्
से बलात करेंगे’’ रलाजेन्द् र्लादव क ‘सलारला आकलाश’ में एक र्षुरि हर्तला िै! आदमी एक में एक घटलार्े तो बचे एक, औरत एक में एक
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की सम्पवत में अर्िे बिि क िक की वकलालत करतला िै, ‘‘इससे घटलार्े तो बचे शसिर, वलाि!’’ कमलेविर ‘विी बलात’ में र्िले र्वत
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उसे आर्की इच्ला र्र जीिे को मजबूर ििीं िोिला र्ड़गला। द्ष प्रशलान् को छोड़ िकल से वववलाि करिे क समीरला क निण्यर् को
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और प्लार आर्की इच्ला र्र ििीं िोंगे।’’ उषला हप्रर्ंवदला क ‘शेष सिी ठिरला िलारी सशशक्तकरण की हदशला में आगे बढ़ जलाते िैं।
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र्लारिला’ की अिषुकला आशथक रुर् से स्वलावलम्बी िोकर सलामलाशजक
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अव्यवस्ला क खखललाि संघष्य करिे की शशक्त र्लाती िै, कष्णला निष्कष्य रुर् में किला जला सकतला िै नक हिन्ी कथला सलाहियि में
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सोबती की वमरिो तो उस सलामलाशजक अव्यवस्ला क खखललाि िलारी को सशक्त बिलािे की हदशला में अिेक प्रर्लास प्रेमचंद र्षुग
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संघष्य करती िै शजसमें िवतकतला-अिवतकतला क मलािदण्ड कवल क कथला सलाहियि से आज तक क कथला सलाहियि में नकए जलाते
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स्ती क ललए िै, शचरिला मद्गल ‘एक जमीि अर्िी’ में अर्िे िलारीर्लारि रिे िैं। र्रम्परलागत मूल्यों क ववरुद्ध आवलाज लगभग सभी कथला
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द्लारला सलामलाशजक अव्यवस्ला क ववरुद्ध ववरोध दज्य करती िै, ‘‘ऐसे सलाहियिकलार उठलाते रिे िै, स्ती अत्स्तला की खोज भी सभी क
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र्षुरुष, जो नकसी स्ती को मलारि शजन्स समझते िैं, औरत को स्वंर् द्लारला की गई िै लेनकि अमलािवीर् आचरण क ववरुद्ध जो सशक्त
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उन्हं ठ षु करलाकर र्ि जतला दिला चलाहिए नक वि भी आत्मसम्लाि आवलाज उठलािी चलाहिए, वि कवल कछ िी क कथला सलाहियि
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रखती िै’’ ‘अकलला र्ललाश’ में मेिरुहन्नसला र्खेि िे कलामकलाजी में वमलती िै, इसक खखललाि भी जोरदलार आवलाज उठलािे की
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स्तस्तर्ों की समस्यला को उठलार्ला िै और उस अव्यवस्ला से िलारी आवश्यकतला िै।
कसे उबरे, इसकला निदलाि भी िलाहिदबलाजी क मलाध्यम से सझलार्ला n डाॅ. पूरनचंद टंडन
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िै, ‘‘बलातों को उतिी गंभीरतला से ि लो जो तम्हें हर्च करती प्रोिसर, हिदी ववभलाग
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हुई तम र्र िलावी िो जलार्ें। सिज बिो और सरलतला से जीिला हदल्ी ववविववद्यलालर्,
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सीखो तो सबकछ आसलाि लगिे लगेगला’’ कमलेविर क ‘लौटे हदल्ी-110007
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