Page 24 - आवास ध्वनि
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         से िटिे को भी तैर्लार िो जलाती िै; मैं तम्हें र्सन् ििीं हू, तम   तथला अर्िी अत्स्तला खो जलािे से भर्भीत िो र्वत प्रशलान् को
         शौक से दूसरी शलादी कर लो’ शशव प्रसलाद शसि िे ‘औरत’ में   छोड़ िकल से वववलाि करिे में संकोच ििी करती िै। कमलेविर
                                              ं
                                                                     षु
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         बंसल और चंदला जैसी स्तस्तर्ों कला सृजि कर िलाररर्ों को र्ि   की किलानिर्ों की िलाररर्लाँ भी अत्स्तला बोध-से भरर्ूर िै; ‘जन्म
         सन्श प्रेवषत नकर्ला िै नक ववर्रीत र्ररब्स्वतर्ों से संघष्य नकए   किलािी में चंदषु की र्त्नी एवं अत्स्, क खलावतर िी सलातवें बच्  े
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                                                                                            े
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         वबिला  अत्स्तला  की  रक्षला  ििीं  की  जला  सकती,  उषला  हप्रर्म्वदला   को जन्म दिे की र्ीड़ला चषुर्चलार् सि लेती िै, ‘‘घबरलाकर वि एक
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         क की ‘शेषर्लारिला’ ‘रूकोगी ििीं रलाशधकला उर्न्यलासों की हदव्यला,   बलार उठी, जलाकर उसिे कििला चलािला नक अब ििी सिला जलातला। तम
                                                                                                               षु
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         अिषुकला, रलाशधकला भी अत्स्तला क प्रवत जलागरुक स्तस्तर्लां िैं ‘शेष   लोग कसे िो, जो र्ड़ िो, र्र भीतर कला संकोच और सब कछ
                                                                                े
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         र्लारिला’ में उषला हप्रर्म्वदला िे ऐसे गर भी शसखलार्े िै जो िैरलाश्य से   सिि कर सकिे क गौखमर् दर् िे उसे रोक ललर्ला’’ ‘तललाश’ की
         भरी िलाररर्लांे में अर्िी अत्स्तला क प्रवत चेतिला जलाग्त कर सकते   समी ववधवला िोिे र्र भी अर्िे शरीर की र्ण्य दखभलाल करती
                                                                षु
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         िै; ‘‘1 अर्िे को दखो तो जरला। मैं मि की अच्ी हू। 2. चेिरला।   िै,‘इवतिलास-कथला’ की जूललर्ला मकसूद क तलािलाशलािी व्यविलार
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         बरला ििीं। 3. मैं खलािला अच्ला र्कलाती हू। 4. मैं िलाईस्ल और इटर   क प्रयिषुत्तर में मकसूद जैसी िी प्रवतहक्रर्ला व्यक्त करती िै।
                                                                े
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         में िस्रट आई थी’’ आहद। कष्णला सोबती को ‘वमरिो मरजलािी’   इस प्रकलार स्वतंत्रोत्तर अन्य कथला सलाहियिकरों की सलाहित्यिक
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         की वमरिो अर्िी अत्स्तला क ललए सतत् संघष्य करती िै। शचरिला   स्तस्तर्लां भी स्व-अत्स्तला क प्रवत जलागरुक िैं। समलाज को र्िी
                                                                                   े
         मद्गल क ‘एक जमीि अर्िी’ की अनकतला र्वत द्लारला उसे शरीर   सन्श दती िैं नक स्व-अत्स्तला क प्रवत जलागृवत क वबिला िलारी-
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         मलािे जलािे को अर्िी बंेइज्ती समझती िै, ‘मैं घर को जीिला   सशशक्तकरण संभव ििीं।
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         चलािती हू बरदलाशत करिला ििीं३ मैं शसि गृहिषी िी ििीं हू, एक
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         स्ती भी हू’’ िलाशसरला शमला्य क ‘शलाल्मली’ की िलाशर्कला शलाल्मली   र्रम्परलागत मूल्यों क प्रवत ववद्रोि - हर्तृसत्त िे मूल्यों कला निमला्यण
         एक ववशशटि व्यशक्तत्व की स्वलावमिी िै। जब उसकला आई.ए.एस   भी अर्िे िी र्क्ष में नकर्ला थला। उि मूल्यों कला र्लालि करते-करते
                                                                                                           े
         में चर्ि िो जलातला िै तब वि ट्ेनिग ललए दूर जलाती िै उसकला र्वत   िलारी स्वअत्स्त्व िी खो बैठो, जब उसमें स्व-अत्स्तला क प्रवत
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         उसे ट्ेनिग छोड़िे क ललए कितला िै नकन् वि र्ि कर ‘इतिी   जलागृवत आई, तब वि समझ र्लाई नक कौि से र्रम्परलागत मूल्य
                                                                  े
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         दूर शजस चीज को खींचकर ललाई हू उसे बीच में छोड़ दू। ऐसी   उसक ववकलास में सलाधक िैं और कौि से मूल्य बलाधक िैं। स्ती
         िौकररर्लाँ क्ला सबक भलाग्य में िोती िै’ र्वत िरेश को वमरुत्तर   की इस मलािशसकतला को हिन्ी कथला सलाहियि िे भी गम्भीरतला से
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                                                                                े
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         कर दती िै।                                            समझला तथला प्रेमचंद क र्षुग से स्वतंत्रोत्तर कथला सलाहियि तक
                                                               में उि मूल्यों क प्रवत ववरोध प्रगट नकर्ला जला रिला िै जो िलारी क
                                                                          े
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         मंजल भगत क ‘आिलारो’ उर्न्यलास की अिलारो र्द्यहर् झलािू-र्ोछला,   व्यशक्तत्व क ववकलास में बलाधक बि कर खड़ िैं हिन्ी कथला
                                                                        े
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         बरति मलाँजिे कला कलार््य करती िै, कज्य क बोझ से दबी िै, मि   सलाहियिकलारों िे इस तथ्य को भलीभलावत समझ ललर्ला िै नक
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                                                                                             ं
         से टूटी एवं ति से थकी िै, तथलाहर् आत्मसम्लाि की रक्षलाथ्य वबिला   इि र्रम्परलागत मूल्यों क प्रवत ववद्रोि व्यक्त नकए वबिला िलारी
                                                                                  े
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         र्ैसे ललए कलाम छोड़िे तक को तैर्लार िो जलाती िै; ‘शोशला िआ’   सशशक्तकरण संभव ििीं इस बलात की शरुआत भी प्रेमचन् र्षुग
                                                                                              षु
         मृदषुलला शसन्हला एक ऐसी ववधवला स्ती की किलािी िै जो ववधवला   से िो गई थी।
         िोकर भी अबलला ििीं बिती, अशधकलार क प्रवत जलागरुक रिते
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                                                                                            े
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         हुए वि ससर से कि कर अर्िे हिस् की जमीि ले लेती िै।    प्रेमचन् र्िले तो संर्षुक्त र्ररवलार क प्रवत कोमल भलाव रखते
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                                                                                 े
         कमलेविर  क  सभी  उर्न्यलासों  की  स्तस्तर्लाँ,  चलािे  नकसी  भी  वग्य   थे लेनकि जब उन्होंिे दखला नक संर्षुक्त र्ररवलार िलारी कला शोषण
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                                                                                                   े
         सम्बद्ध  िैं,  अर्िी  अत्स्तला  को  िर  कीमत  र्र  बचलार्े  रखिला   करतला  िै  और  हर्तृसत्तलात्मक  व्यवस्ला  इसक  प्रवत  उत्तरदलार्ी
                                                                                े
         चलािती िैं। ‘एक सड़क सत्तलावि गललर्लां’ की बंशसरी, ‘तीसरला   कलारण िै, तब वे उसक ववरुद्ध चले जलाते िैं उर्न्यलास ‘गबि’ को
                                                                                े
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         आदमी’ की शचरिला, ‘िलाक बंगलला’ की इरला, ‘कलाली आधी’ की   रति क मलाध्यम से संदश प्रेवषम करते िै नक संर्षुक्त र्ररवलार स्ती
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         मलालती, ‘आगलामी अतीत’ की चंदला और चलांदिी, ‘विी बलात’ की   क ललए िलों की सेज ि िोकर इसे निगलिे वलालला जन् िै। अतः
         समीरला आहद सभी बहुत स्वलाहभमलािी एवं स्वं अत्स्तला बोध से   नकसी स्ती कला संर्षुक्त र्ररवलार मैं वववलाि िो भी जलातला िै तब भी
         सम्पन्न िै, ‘ विी बलात’ की समीरला तो अकलेर्ि से ऊबती हुई   उसे तब तक चैि ििीं लेिला चलाहिए, जब तक वि अलग घर ि
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