Page 27 - आवास ध्वनि
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िलारीर्लारि बंशसरी कला सृजि नकर्ला जला र्षुरुष क द्लारला नकए गर्े निदलाि भी सझलार्ला िै। िमलारे र्षुवला वग्य को चक्रधर क समलाि
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अमलािवीर् आचरण र्र आक्रश व्यक्त करती िै। बंशसरी सरलार् में अर्िे मलातला-हर्तला क समक्ष र्ि घोषणला करिी िोगी ‘अगर तम
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वबकिे क ललए ले जलाई जलाती िै उसे सरिलाम द्लारला रंगीले क ललए मेरे सलामिे लेि-दि कला िलाम लोगी तो मैं ्ज़िर खला लूंगला’ उन्हीं
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खरीद ललर्ला जलातला िै, र्ि विी सरिलाम िै शजसे बंशसरी िे अर्िला की ‘कसम’ किलािी की कसम भी दिेज प्रथला क खखललाि स्वर्ं
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सव्यस्व समहर्त नकर्ला थला, सरिलाम क इस अमलाििीर् आचरण आवलाज उठलाती िै और अर्िी सशक्त्ततला कला र्ररचर् दती िै।
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र्र बंशसरी क मि में प्रवतशोध की ज्लालला धधकिे लगती िै।ं जब रलाजेन्द् र्लादव क ‘सलारला आकलाश’ की प्रभला समलाज में व्यलाप्त रुहढ़र्ों
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शशवरलाज सरिलाम क सलाथ ि रििे कला निण्यर् करतला िै तब से वि और करीवतर्ों क ववरूद्ध संघष्य करती िेै, र्ररवलार द्लारला र्रद े
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‘‘खश िै। उस सरिलाम से हर्ि छ षु टेंगला, अकलेर्ि की मलार से वि की चलाििला रखिे र्र भी वि र्रदला ििीं करती। बलाल वववलाि
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बेिलाल िो जलार्ेगला, तड़र्ेगला, र्छतलार्ेगला और तब वि लस् र्ड़ े जैसी कप्रथला क दषुष्ररणलाम भी र्लादवजी िे हदखलार्े िैं। िलारी-
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शेर को दखेगी। नकतिला अनिव्यचिीर् आिन् िोगला’ वि सरिलाम शशक्षला की वकलालत करक वे र्ि बतलाते िैं नक आज क समर् में
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से िरती ििीं िै उन्हीं क ‘लौटे हुए मसलाहिर’ की सलमला को शशक्षला िी िलारी को शशक्त शलाली बिला सकती िै। कष्णला सोबती
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जब र्तला चलतला िै नक उसक र्वतमकसूद और र्लासीि क बीच क ‘वमरिोमरजलािी’ की वमरिो अर्िे को र्वत से बेितर मलािती िै,
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समलवगक सम्बन् िैं, तो वि उसे छोड़कर अर्िे हर्तला क घर स्तण इखन्द्र्ों र्र गव्य करती िै, वि ि घूधट की र्रवलाि करती
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आ जलाती िै, कमलेविर क ‘आगलामी अतीत’ में चलांदिी क सलाथ िै और ि शम्य-लज्ला से र्षुक्त दृहटि की। ‘‘सरदलारी िे कड़क कर
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बेटी-बेटी कििे वलाले व्यशक्त क द्लारला बललात्कलार नकर्ला जलातला र्ूछला-िजर िीचे करती िै र्ला ििीं, मंझली बहू िे ऐसला सब कछ
िै। इस अमलािवीर् ब्स्वत को सििे वलाली चंलादिी र्षुरुष वग्य क ििीं नकर्ला। बड़ी-बड़ी भूरी औखें घरवलालों कला सलामिला नकए रिीं’’
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प्रवत हिसलात्मक प्रवतहक्रर्ला व्यक्त करती िै। वि निरलाश ितलाश ि इसी प्रकलार उिक सूरजमखी अधेरे क’ की बलालत्कृत रत्ती कछ
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िोकर वेश्यला कम्य को स्वलाहभमलािर्व्यक करती िै। कमलेविर तो समर् तक सलामलाशजक िवतकतला क बोध क कलारण र्ीनड़त रिती
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स्ती से अमलािवीर् बलात कििे वलालों क प्रवत भी आक्रोश व्यक्त िै, बलाद में सलामलाशजक िवतकतला क गभ्य मे वछर्े मम्य को समझ,
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करते िै। ‘विी बलात’ में जब तिसीलदलार अर्िी रौ में समीरला क इससे छ षु टकलारला र्ला, िर्ला जीवि चषुििे क ललए तैर्लार िो जलाती िै।
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ललए ‘र्लार िमें र्तला िोतला तो िम िी जीत लेते इस हूर को। मौकला शचरिला मद्गल क ‘एक जमीि अर्िी’ की अनकतला की मलाँ समलाज
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चूक गर्े’ कला प्रर्ोग करतला िै तब कमलेविर खजलांजी बलाबू से में व्यलाप्त उस रुहढ़ क खखललाि संघष्य करती िै शजसमें वववलाहितला
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ववरोध दज्य करवला दते िैं, कमलेविर क अिबीतला व्यतीत’ की को सलारला जीवि, अच्ला र्ला बरला, ससरलाल में िी गजलारिला र्ड़तला
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समीरला र्शषुर्लक्षर्ों क प्रवत नकए जलािे वलाले अमलािवीर् व्यविलार िै, जब र्षुषुत्नी अनकतला दषुख दिे वलाले र्वत को छोड़कर आ जलाती
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कला ववरोध अर्िी जलाि दकर करती िै िै, तब समलाज द्लारला अगली उठलार्े जलािे र्र वृद्धला मलाँ जवलाब दती
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िै, ‘‘क्ों घटती जीवि भर उसक सलाथ। र्ढ़ी ललखी िै, अर्िे
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समाज में व्ाप्त रुडियों एवं कररीर्तयों क प्रर्त संघ्षद्ध:- जब र्लावों र्र खड़ी रि सकती िै३ण् र्ि तो तैर्लार िी ििी िोती,
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से िलारी जगत में शशक्षला और आधनिकतला कला प्रचलार-प्रसलार वरिला कल करवला दू दूसरला वववलाि, कौि कमी िै िमलारी वबट्टी
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हुआ िै, तब से रुहढ़र्ों एवं करीवतर्ों कला िटकर मकलाबलला में’’। कमलेविर क ‘एक सड़क सत्तलावि गललर्लां’ की बंशसरी वबिला
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करिे लगी िैं। प्रेमचंद क ‘गोदलाि’ की सोिला, जो अशशलक्षत तो वववलाि नकए िी रंगीले क सलाथ रिती िै। ‘रलाजिीवत जो कवल
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िै लेनकि र्ररवेश क प्रवत जलागरुक भी िै, ििीं चलािती नक र्षुरुषों क ललए मलािी जलाती थी, स्तस्तर्ों क ललए ििीं, इस रुहढ़
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उसकला वववलाि क्ज़्य लेकर िो। अतः वि अर्िे िोिे वलाले र्वत को तोड़कर कमलेविर ‘कलाली आधी में’ जग्ी बलाबू से किलवलाते
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को संदश हभजवलाती िै, ‘‘र्हद तमिे एक र्ैसला भी दिेज ललर्ला िैं, ‘दश क निमला्यण में औरतों को भी आगे आिला चलाहिए। औरते
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तो मैं तमसे वववलाि ििीं करूगी।’’ प्रेमचंद में िरीवत से लड़िे र्लािी िमलारी आधी जिसंख्ला, जब तक इस तलामीर में िलाथ ििीं
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वलाली सोिला जैसला स्ती र्लारि की सृहटि की िै उन्होंिे ‘कलार्लाकल्प’ बँटलार्ेंगी, तब तक िर कलाम की स्ीि आधी रिेगी३ण् र्ि
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में चक्रधर क द्लारला दिेज प्रथला जैसी करीवत को दूर करिे कला बहुत जरूरी िै नक िमलारे घर की औरतें आगे आर्ें और िर कलाम
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