Page 23 - आवास ध्वनि
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अिमेल वववलाि कला ववरोध नकर्ला और िलारी को सशक्त बिलािे क दतला िै तब नििर िोकर अर्िे र्वत से किती िै, िॉं, र्ों किो नक
ललए स्ती-शशक्षला कला समथ्यि नकर्ला। सलाथ िी ‘बलाललाबोशध’ िलामक मझे रखिला ििीं चलािते। मेरे शसर र्र र्लार् क्ों लगते िो? क्ला
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र्हरिकला भी निकलाली। नकशोर ललाल गोस्वलामी िे अर्िे करल एक तम्हीं मेरे अन्नदलातला िो? जिलाँ मजूरी करुगी, विीं र्ेट र्लाल लूंगी
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उर्न्यलास ष्लालती मलाधव वला भवि मोहििीष में िलारी की ब्स्वत निम्यलला की सधला, ‘रंगभूवम’ की इन्षु, ‘अस्तन्म शलावत’ किलािी को
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क सधलार र्र बल दते हुए किलाए ष्अर्िे दश क भलाइर्लांे से इस गोर्ला, ‘प्रवतज्ला,’ उर्न्यलास की सषुवमरिला अयिन् गररमलावलाि और
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बलात क ललए सवविर् अिषुरोध करिला हू नक सबसे र्िले कन्यलाओं अर्िी अत्स्तला र्र आच ििीं आिे दिे वलाली िलाररर्लां िै।
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क सधलार कला प्रर्त्न करें क्ोंनक सकन्यला समर् र्र सगृहिणी प्रेमचंदोत्तर कथला सलाहियि में जैिेन्द् क ‘सखदला’ उर्न्यलास की
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िोगीए तो विी एक हदि समलातला भी िोगी और र्षुरि सषुर्षुरि अवश्य स्ती में र्ि भलाविला गिरलाई से व्यलाप्त िै, विि र्त्नी िै, र्र िलारी
िी िोगलाष् इस वलाक् क मलाध्यम से उन्होंिे स्वस् समलाज क मूल िै। वि र्वत में ििीं, स्वर्ं भी िै, उसक बषुलद्ध भी िोती िै और
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र्लाई जलािे वलाली स्वस् स्ती क ववकलास क प्रवत समलाज को सचेत वि निण्यर् भी कर सकती िै, तथला इललाचंद ‘जोशी वववेचिला’
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नकर्ला िै, (भलारतेन्षु तथला नकशोरी ललाल गोस्वलामी क अवतररक्त में अर्िी सलाहित्यिक स्तस्तर्ों क ववषर् में स्वंर् किते िैए ऐसी
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श्ी निवलास दलास, गोर्लाल रलाम गिमरी, मिेतला लज्ला रलाम शमला्य, सबल और सचेत िलाररर्ों की सृहटि कर मिे आज क र्षुग की
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गंगलाप्रसलाद गप्त, अर्ोध्यलाशसि उर्लाध्यलार्, िररऔध कष्ण ललाल संघष्यशील िलारी कला शचरि मिोवैज्लानिक ढ़ग से प्रस्त करिे कला
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वमला्य, व्रजिन्ि सिलार्, मन्नि हद्वेदी जैसे उर्न्यलासकलारों िे िलारी- प्रर्लास नकर्ला िै, उिको सलाहित्यिक स्तस्तर्लां र्षुरुष की हर्छलग् ि
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सशशक्तकरण िेत कोई प्रर्लास ििीं नकर्ला।) बि उिक समकक्ष आिे को तत्पर रिती िैए सन्यलासी की शलावत
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जि-जि क मि क िष्य, उल्लास और व्यथला को सजीवतला से और जर्न्ी, ‘प्रेत और छलार्ला’ की मंजरी और िहदिी, निवला्यशसत
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उकरिे वलाले प्रेमचंद कला जब कथला सलाहियि जगत में प्रवेश हुआ, की िीललमला, शलारदला तथला प्रवतमला, ‘मषुशक्तर्थ’ की सषुिंदला आहद
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तब भलारत में र्षुिजला्यगरण कला प्रभलाव जोरलांे र्र थला। समलाज में स्ती सभी में अत्स्तला बोध कट-कट कर भरला िै। अरोर् की स्तस्तर्ों
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को सशक्त बिलािे क प्रर्लास चहुओर नकए जला रिे थे शजसकला कला ष्अिंष् इतिला प्रभलावशलाली िै नक उिकला कोई भी उर्न्यलास
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प्रभलाव प्रेमचंद जैसे संवेदिशील मि वलाले व्यशक्त र्र भी र्ड़ला, एवं किलािी उससे बच ििीं सक िैं। र्शर्लाल क उर्न्यलास ‘र्लाटती
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हिन्ी कथला सलाहियि में प्रेमचंद िे िलारी को सशक्त बिलािे की कलामरेि’ की गीतला भी चलािती नक उसे कवल ववललास और सौन्र््य
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हदशला में मित्वर्ण्य र्ोगदलाि हदर्ला तथला िलारी सशशक्तकरण क की गषुनड़र्ला ि समझला जलार्े, उसक प्रवत संवेदिशील भलाविला रखी
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ववववध आर्लामों को अर्िे कथला सलाहियि कला कन्द् बिलार्ला, इस जलार्े, ‘झूठला सच’ को तलारला ववषम र्ररब्स्वतर्ों से घबरलाती ििीं,
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हदशला में प्रेमचंद िे जो र्रम्परला प्रलारम्भ की, वि आज क सलाहियि उिसे संघष्य कर अर्िे ष्स्वष् कला निमला्यण करती िै, स्वलातंत्रोत्तर
में भी दखी जला सकती िै, प्रेमचंद र्षुग, प्रेमचंदोत्तर र्षुग तथला कथला सलाहियि में तो स्तस्तर्लां अर्िी अत्स्तला को लेकर बहुत
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स्वलातंत्रोत्तर कथला सलाहियि क आधलार र्र अब िलारी सशशक्तकरण शचस्तन्त िजर आती िै, अमृतललाल िलागर तो ‘बूंद और समद्र’ में
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क ववववध आर्लामों र्र चचला्य की जलार्ेगी। स्ती अत्स्तला को ववषर् में गंभीर शचन्ि क र्चिलात् र्ि निष्कष्य
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प्रस्त कर दते िैं नक शजस हदि स्ती जलावत अर्िे ऊर्र िोिे वलाले
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नाररी अत्मिता की तलाश एवं उसकी साथद्धकता:- िलारी सशक्त
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तब िो सकती िै जब उसे अर्िे ष्स्वष् की र्िचलाि िो जलार्े, इस अयिलाचलारों कला अन् करिे क ललए खड़ी िो जलार्ेगी, उसी हदि से
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ष्स्वष् की र्िचलाि करवलािे में हिन्ी कथला सलाहियि िे मित्वर्ण्य िर तरि क अयिलाचलार वमट जलार्ेगे। इवतिलास भी इस बलात कला
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र्ोगदलाि हदर्ला। प्रेमचंद ष्कसमष् किलािी में िलारी-अत्स्तला की गवलाि िै नक जब तक शोवषत व्यशक्त शोषण क ववरुद्ध प्रलाण
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र्िचलाि करवलाते िैं ‘अगर र्षुरुष स्ती कला मोितलाज ििी: तो स्ती भी दिे की सीमला तक आवलाज ििीं उठलातला िै तब तक वि अर्िला
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र्षुरुष की मोितलाज क्ों िो? ईविर िे र्षुरुष को िलाथ हदए िैं तो अत्स्त्व कलार्म ििीं कर र्लातला िै, मोिि रलाकश क ‘अधेरे बंद
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क्ला स्ती को उिसे वंशचत रखला िै? र्षुरुष क र्लास बषुलद्ध िै तो क्ला कमरे’ की सषमला श्ीवलास्व भी र्िी चलािती िै, ‘मैं इन्सलाि हू तो
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स्ती अबोध िै? ‘सेवला सदि’ की समि अर्िे ‘स्व’ क प्रवत सचेत ठीक से जीऊ क्ों ििीं? रलाजेन्द् र्लादव क ‘सलारला आकलाश’ की
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िै वि र्वत की अिषुभवत क वबिला अर्िी सखी क र्िलाँ कलार््यक्रम प्रभला तो बहुत स्वलाहभमलािी िै। वि अर्िे प्रवत र्वत समर की
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में जलाती िै र्ररणलाम स्वरुर् उसकला र्वत उसे रलाहरि में िी निकलाल िलार्सन्शी कला कलारण भी ििीं जलाििला चलािती, वरि् उसक मलाग्य
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