Page 21 - आवास ध्वनि
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आधुडनक ष्हन्री कथा साष्हयि म ें
नाररी-सशर्तिकरण क र्वर्वध आयाम
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ज समलाज में चलारों और एक बलात की सवला्यशधक
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चचला्य िो रिी िै, वि िै - िलारी-सशशक्तकरण,
िमलारला संववधलाि, िमलारी सरकलार, सरकलारी, अद्धसरकलारी और
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गैरसरकलारी, सभी संस्लार्ें िर संभव प्रर्लास से िलारी को सशक्त
बिलािे की हदशला में प्रर्लासरत िैं। सभी की एक िी इच्ला िै नक
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िलारी की दवमत, शोवषत एवं र्वतत ब्स्वत में सधलार िो, वि
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आशथक रुर् से स्वलावलम्बी िो, वि भी र्षुरुष क समलाि अर्िी
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अत्स्तला को र्िचलािे, उसमें अर्िे अशधकलारों क प्रवत जलागरुकतला
आर्े, उसमें शशक्षला कला प्रसलार िो तथला उसमें उि र्रम्परलागत मूल्यों
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क ववरुद्ध संघष्य करिे की शशक्त आर्े जो अभी तक उसक
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ववकलास क मलाग्य को अवरुद्ध कर रिे थे, िलारी में अर्िे प्रवत एक
ववविलास रिे तथला उसे अबलला और आश्श्तला समझिे की प्रवृशत्त
समलाप्त िो।
जब समूचला तंरि इस हदशला में प्रर्लासरत िो तब सलाहियि इस तथ्य
से अछ ू तला कसे रि सकतला िै? सलाहियि भी िलारी-सशशक्तकरण
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में मित्वर्ण्य भूवमकला निभला सकतला िै क्ोंनक वि सलाहियि र्ररवत्यि प्रकवत कला निर्म िै। इस कलारण जब समलाज िे करवट
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िी िै शजसमें िलारी-जीवि क छ षु ए-अिछ षु ए र्िलओं को उठलार्ला बदली, तब वववि क अिेक दशों क सलाथ भलारत में र्षुिजला्यगरण
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जला सकतला िै, शजसमें उसक जीवि क शलारीररक, मलािशसक, (रेिेसलाॅ) िे दस्कदी र्षुिजला्यगरण अथला्यत् दो संस्ृवतर्ों की
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सलामलाशजक, रलाजिीवतक, आशथक, धलावमक, मिोवैज्लानिक आहद टकरलािट से उत्पन्न ऊजला्य, र्षुिजला्यगरण क ववषर् में श्ी रलामधि
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सभी क्षेरिों की समस्यलाओं को ववचलारलाथ्य उठलाकर उिक निवलारणलाथ्य मीिला िे किला िै, “र्षुिजला्यगरण व्यशक्त को मध्यर्षुगीि अधववविलासों,
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समलाधलाि प्रस्त नकए जला सकते िैं, शजसमें हर्तृसचलात्मक समलाज रुहढ़र्ों, वण्य, एवं धम्यशलास्तों क बंधि से मक्त करक, स्वतंरि
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तथला हर्तृसत्तलात्मक मूल्यों कला स्ती क सन्भ्य में र्षुिमू्यल्यलांकि शचति द्लारला अर्िे व्यशक्तत्व क ववकलास कला अवसर दिे वलालला
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नकर्ला जला सकतला िै और वि सलाहियि िी िोतला िै शजसमें तथला प्रलाचीि र्िलािी एवं रोमि संस्ृवत क आधलार र्र एक िई
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भलारतीर् र्ररवेश क अिषुरुर् िलारी क सवला्यगीण ववकलास क ललए संस्ृवत क निमला्यण कला प्रर्लास थला। इसकी मषुख् ववशेषतलार्ें थीं
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मलाग्य प्रशलास् नकर्ला जला सकतला िै। -स्वतंरि शचन्ि, वैज्लानिक व्यलाख्ला एवं तक बषुलद्ध की प्रधलाितला,
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अधववविलासों, रुहढ़र्ों एवं बंधिों से मषुशक्त क ललए छटर्टलािट,
इस बलात से तो सभी सिमवत रखते िै नक िलारी सदला से सलाहियि
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क कन्द् में रिी िै। िलाँ, र्ि बलात अवश्य िै नक सलामलाशजक- अत्स्त्व वलादी भलाविला, मलािवतलावलादी ववचलारधलारला एवं स्वतंरि
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चहुमखी ववकलास (र्षुिजला्यगरण क आरव्यलातला-मैशथली शरण गप्त)
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सलांस्ृवतक र्ररब्स्वतर्ों क अिषुरुर् सलाहियि में उसकी ब्स्वत
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बदलती रिी। उसकला वण्यि किीं दवी क रुर् में, किीं रमणी क 19वीं शतलाब्दी र्षुिजला्यगरण (रेिेसॅला) क भलारत में आिे कला
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रुर् में, किीं दलासी क रुर् में, किीं वस् क रुर् में, किीं भोग्यला र्ररणलाम र्ि हुआ नक िमलारे समलाज क र्षुरुषों िे अिषुभव नकर्ला
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क रुर् में, किीं र्षुरुष क सम्लाि क प्रतीक क रुर् में, किीं नक भलारत की िलारी तो र्रद में ललर्टी अर्िे अत्स्त्व क मलाि
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अवित्तला और बललात्कृतला क रुर् में िोतला रिला, नकन् िलारी कला से सबको अिहभज् रखिे कला प्रर्लास करती िै, उसकी ब्स्वत
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िलारी क रुर् में, मलाि क रुर् में वण्यि किीं ििीं हुआ। तो हदि प्रवतहदि वबगड़ती जला रिी िै, तब रलाजला रलाममोििरलार्,
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