Page 17 - आवास ध्वनि
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         समलाज को उर्लधि करलािला, वलास्व में, अिषुवलाद से िी संभव िो   जररर्ला बििे लगला। व्यवसलार् क रूर् में अिषुवलाद क प्रलारंहभक
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                                      े
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         र्लातला  िै।  भूमंिलीकरण  क  आज  क  दौर  में  तो  अिषुवलाद  की   ववकलास की प्रवृशत्त सलाहित्यिक अिषुवलाद क क्षेरि में िजर आती िै।
         अनिवलार््य आवश्यकतला एवं ब्स्वत िै। भूमंिलीकरण, ’ग्ोबल   अमेररकला और र्ूरोर् में इस प्रवृशत्त और प्रहक्रर्ला कला व्यविलार
                                                                                                            े
         ववलेज’ की अवधलारणला कला र्क्षधर िै। लेनकि, उसकला मूल उत्स   बहुत तेजी से ववकशसत िोिला शरू हुआ थला। भलारत में भी दखें तो
                                                                                       षु
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         ’वसधैव कटषुंबकम्’ की भलारतीर् ववचलार दृहटि में निहित िै। मूलतः   र्िलाँ  1960  क  बलाद  अिषुवलाद  सलाहित्यिक-सलांस्ृवतक  और
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         वववि बंधत्व की र्ि र्षुिीत भलाविला अिषुवलाद से र्षुटि िो र्लाती िै,   ऐवतिलाशसक सीमलाओं से बढ़कर भलाषला व्यविलार क प्रर्ोजिमूलक
                                                                                                    े
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         सलाथ्यक शसद्ध िो र्लाती िै। व्यवसलार् क रूर् में अिषुवलाद: अिषुवलाद   क्षेरिों क ललए अर्ररिलार््य िो गर्ला। इसक सलाथ-सलाथ ज्लाि-ववज्लाि
                                                                                             े
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         की  आवश्यकतला  क  मूल  में  अिषुवलादक  की  स्वेच्ला  अथला्यत   और  प्रौद्योवगकी  जगत  क  ववकलास  िे  जीवि  व्यविलार  को
                                                                                    े
         सज्यिलात्मक प्रेरणला िे शशक्त-स्रोत कला कलाम नकर्ला िै। इस दृहटि क   बहुआर्लामी  रूर्  प्रदलाि  कर  हदर्ला  िै।  इि  क्षेरिों  में  भलाषला  की
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         आधलार र्र नकए जलािे वलाले अिषुवलाद-कम्य क ललए ि तो अिषुवलादक   अनिवलार््य  उर्ब्स्वत  िे  अन्य  भलाषला-भलावषर्ों  क  सलाथ  संप्रेषण-
                                                                                                   े
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         से नकसी ववशेष प्रकलार क और्चलाररक अिषुवलाद प्रशशक्षण प्रलाप्त   संवलाद में अिषुवलाद की अनिवलार््यतला बढ़ला दी िै। शलासि-प्रशलासि,
         करिे की अर्क्षला रिती थी और ि िी भलाषला क सूक्ष-अवतसूक्ष   बैंक, वलालणज्य-व्यलार्लार, ज्लाि-ववज्लाि, शशक्षला, र्र््यटि, शचनकत्सला,
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         ज्लाि र्ला अद्यति अिषुवलाद शसद्धलांतों क बोध की। दूसरी भलाषला में   सलाहित्यिक-सलांस्ृवतक आदलाि-प्रदलाि और जिसंचलार (मीनिर्ला)
                                                                                                                े
         रशचत िए और स्वर्ं में ववशशटि सलाहियि - भले िी वि सज्यिलात्मक   आहद  क्षेरिों  में  अिषुवलाद  की  आवश्यकतला  िे  इसे  रोजगलार  क
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         सलाहियि िो र्ला हिर ज्लािलात्मक सलाहियि - को अर्िी भलाषला क   मलाध्यम  क  रूर्  में  प्रवतवष्ठत  नकर्ला।  वलास्ववकतला  र्ि  िै  नक
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                                                                                                        े
         लोगों तक स्वेच्ला से र्हुचलािे कला कलाम अिषुवलादक कर हदखलातला   स्वैब्च्क  हक्रर्ला  से  ऊर्र  उठकर  मलािव-जीवि  क  कमोबेश
                                                                                                े
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         रितला िै। स्वलाभलाववक िै नक इस स्र र्र र्ला इस प्रकलार नकर्ला   समस् व्यलाविलाररक कलार्यों क निष्लादि क ललए अिषुवलाद िमलारे
                                                                              ं
         जलािे वलालला अिषुवलाद वि ’व्यशक्तगत कलार््य’ िै जो अिषुवलादक से   जीवि कला अहभन्न अग बि गर्ला िै; इसक वबिला व्यशक्त असिलार्
                                                                                              े
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         अर्िे भलाषला-ज्लाि क आधलार र्र लक्ष् भलाषला में र्षुिःसृजि कला   िै। सूचिला और संचलार क्रलांवत क ववकलास क कलारण जीवि क िर
                                                                                               े
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         कलाम करलातला िै। र्षुिःसृजि की इस स्वैब्च्क हक्रर्ला से अिषुवलादक   क्षेरि में आई क्रलांवत, अिषुवलाद की इस अनिवलार््य आवश्यकतला को
                                                                                                                े
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         को एक ववशशटि सज्यिलात्मक सख की अिषुभूवत िोती िै। ववशेष   ’अर्ररिलार््यतला’ में बदल रिी िै। इस ब्स्वत िे संचलार मलाध्यमों क
                                                                                                     े
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         र्ि भी िै नक र्ि अिषुभूवत, मौललक सृजि क सख की तलिला में   प्रसलार और गणवत्तला में अभूतर्व्य वृलद्ध की िै। इसक कलारण, आज
         कतई कमतर ििीं िोती। इसीललए अिषुवलाद रूर्ी सलाधिला-कम्य   समूचला  वववि  ’एक  गलाँव’  में  बदल  गर्ला  िै;  भौगोललक  दूररर्लाँ
         को ’स्वलांतःसखलार्’ मलािला जलातला रिला िै। भलारत में अिषुवलाद कम्य को   समलाप्त िो गई िैं। सूचिला कला तीव्र गवत से संचलार िो रिला िै।
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                                                                             े
         एक लंबे समर् तक इसी ’स्वलांतः सखलाए’ दृहटि से व्यविलार में   व्यलाविलाररकतला  क  स्र  र्र  दखें  तो  जिसंचलार  क  प्रकलारों  में
         ललार्ला  जलातला  रिला  िै।  इस  संदभ्य  में  मध्यकलालीि  वववि-कवव   लगलातलार िो रिी वृलद्ध से र्ि क्षेरि निरंतर व्यलावसलाशर्कतला की
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                                                                      ँ
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         गोस्वलामी तलसीदलास कला िलाम ववशेष तौर र्र उल्खिीर् िै,   िई-िई ऊचलाइर्ों को छ ू ट रिला िै, रोजगलार क िए-िए और सषुििरे
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         शजन्होंिे ’स्वलांतःसखलार् तलसी रघषुिलाथ गलाथला’ की घोषणला करते   अवसर  उर्लधि  करला  रिला  िै।  इसक  कलार््य-क्षेरि  की  बढ़ती
                                                                                             े
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         हुए ’रलामचररतमलािस’ जैसी अर्िी कलालजर्ी रचिला ललखी जो   व्यलार्कतला और भलाषलार्ी दूररर्ों को र्लाटिे कला कलाम अिषुवलाद क
         मूलतः सज्यिलात्मक र्षुिःसृजि कला सवपोत्कृटि उदलािरण िै। र्ि,   वबिला संभव ििीं। जिसंचलार की इस वववि-व्यलार्कतला क सलाथ-
                                                                                                          े
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         अिषुवलादक क द्लारला सलामलाशजक दलाशर्त्वों को गंभीरतला से निभलािे   सलाथ उसकला ’स्लािीर्’ िोिला जरूरी िोतला िै। तभी वि सिी अथयों
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         कला संकत भी करतला िै। लेनकि, समर् क सलाथ-सलाथ आत्म-   में अर्िी आवश्यकतला को शसद्ध कर र्लातला िै और र्ि जषुड़लाव
                                                                                                       े
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         संतोष र्र व्यलाविलाररकतला और व्यलावसलाशर्कतला िलावी िोती चली   अर्िी भलाषला क वबिला संभव ििीं िै। दश-ववदश क संचलार को
                                                                                                   े
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         गई। र्ररणलामस्वरूर्, स्वैब्च्क हक्रर्ला से आगे बढ़कर अिषुवलाद   अर्िी  भलाषला  में  अिषुवलाद  क  द्लारला  ललार्ला  जला  र्लातला  िै;  जो
                                                                                     े
         व्यलावसलाशर्क रूर् धलारण करतला चलतला गर्ला; रोजगलार प्रलाहप्त कला   अिषुवलादकवमर्ों की उर्लधितला और सहक्रर्तला से िी संभव िो
                                                                        टि
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