Page 13 - आवास ध्वनि
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अनुवाद क प्रकार एवं साष्हत्यिक अनुवाद का महत्त् अिषुवलाद क अिेक सकलारलात्मक र्क्ष िैं, विीं इसकला एक
िकलारलात्मक र्क्ष भी िै। असलावधलािी, ललार्रवलािी र्ला षड्ंरि क
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अिषुवलाद अिेक प्रकलार
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कला िोतला िै। जैसे अतग्यत नकर्ला गर्ला अिषुवलाद ि कवल उस रचिला और रचिलाकलार
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शब्दलािषुवलाद शजसमें क सलाथ अन्यलार् करतला िै, उसकी गलत छवव प्रस्त करतला िै,
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शब्द क स्लाि र्र अहर्त दश और उस संस्ृवत को भी िलानि र्हुचलातला िै, शजससे उस
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दूसरी भलाषला क शब्द रचिला कला, उस भलाषला कला संबंध िोतला िै।
को रख हदर्ला जलातला िै। भारतरीय संस्ृर्त का वैशविक र्वस्ार
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इसे संस्त में ‘मलक्षकला सलाहित्यिक अिषुवलाद क स्वरूर् और मित्त् को समझ लेिे क
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स्लािे मलक्षकला’ र्लािे र्चिलात भलारतीर् संस्ृवत और वैश्विक ववस्लार शब्दों र्र भी
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मक्ीक स्लाि र्र चचला्य कर लेिी आवश्यक िै। संस्ृवत अथला्यत् सम्यक रूर् से
मक्ी रखिला किते िैं। इस अिषुवलाद कला मित्त् ववशेष रूर् से रची गई कवत। भलारतीर् संस्ृवत कला उल्ख करते िी िमलारे
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उि स्लािों र्र िोतला िै, जिलाँ शब्द र्र आधलाररत रचिला िोती िै। सम्ख संस्त कला वववि स्रीर् सलाहियि सलाक्षलात िो जलातला िै।
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दूसरला अिषुवलाद भलावलािषुवलाद किला जलातला िै, शजसमें र्ूरे वलाक् क वैहदक और लौनकक संस्ृवत में रचे गए ववर्षुल सलाहियि को िी
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भलाव को समझकर लक्ष् भलाषला में उसी भलाव को व्यक्त करिे कला भलारतीर् संस्ृवत कला मूललाधलार मलािला जलातला िै। भलारतीर् संस्ृवत
प्रर्लास नकर्ला जलातला िै। र्ि अिषुवलाद प्रलार्: सलाहित्यिक रचिलाओं सयिमेव जर्ते; वसधैव कटषुंबकम; मलातृ दवो भव, हर्तृ दवो
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क ललए अनिवलार््य िोतला िै और मेरे ववचलार में सलाहित्यिक अिषुवलाद भव, आचलार््य दवो भव, अवतशथ दवो भव; र्रोर्कलारलार् र्षुण्लार्,
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ववशेष रूर् से चषुिौतीर्ण्य िोतला िै, क्ोंनक सलाहियि में कवल र्लार्लार् र्रर्ीििम; तेि यिक्ति भंजीथला; सववे भवंत सखखिः सववे
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शब्द और वलाक् िी ििीं िोते, अहर्त उसमें उस समलाज की संत निरलामर्ला; असतो मला सद्गमर् तमसो मला ज्योवतग्यमर् मृयिोमला्य
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सोच, जीवि मूल्य, सलांस्ृवतक शचति अहभव्यशक्त र्लातला िै, शजस अमृतगमर्, जििी जन्मभूवमचि, स्वगला्यदहर् गरीर्सी जैसे जीवि
समलाज में मूल लेखक रितला िै। मूल्यों कला दूसरला िलाम िै।
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साष्हत्यिक अनुवाद का स्वरूप एवं महत्त् बतात हुए अपन रे तरीसरा र्बदु है - वैश्विक ववस्लार। ‘वववि’ शब्द में ‘इक’ प्रयिर्
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लख – ‘साष्हत्यिक अनुवाद : चषुिौवतर्लाँ एवं संभलाविलाए’ में प्रो. लगलािे से ‘वैश्विक’ शब्द बितला िै, शजसकला अथ्य िै - र्ूरे वववि में,
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अरुण िोतला ललखते िैं, “नकसी भी भलाषला क सलाहियि की ववववध और ववस्लार कला अथ्य िै - िललाव। इसी ‘वववि’ शब्द में ‘करण’
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ववधलाओं की अन्य भलाषला में अिहदत रचिला को सलाहित्यिक अिषुवलाद लगलािे से ‘वैविीकरण’ शब्द भी बितला िै, शजसक समलािलांतर
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किला जलािला चलाहिए। कलाव्यलािषुवलाद, कथलािषुवलाद, िलाट्लािषुवलाद आहद ‘भूमंिलीकरण’ शब्द भी कछ समर् तक प्रचललत हुआ। र्े दोिों
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सलाहित्यिक अिषुवलाद की ववववध कोनटर्लाँ िैं। XXX सलाहित्यिक शब्द अग्जी क ‘ग्ोबललाइजेशि’ क समलािलांतर गढ़ गए। अब
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अिषुवलाद भलावषक प्रहक्रर्ला मलारि ििीं िै। ि िी र्ि स्रोत-भलाषला क इिमें से ‘वैविीकरण’ शब्द िी अशधक प्रचललत एवं स्वीकलार््य
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शब्दों को लक्ष्-भलाषला क शब्दों में तब्दील कर दिला िै। सलाहियि िो गर्ला िै। भलारतीर् जीवि दृहटि, जीवि दश्यि, जीवि मूल्य
कला मूललाधलार संवेदिला िै। अिषुवलादक को उस संवेदिला को र्रत- अथला्यत भलारतीर् संस्ृवत क वववि भर में प्रचलार-प्रसलार कला आधलार
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दर-र्रत खोलिला र्ड़तला िै। सलाहित्यिक अिषुवलाद कललात्मक तो सलाहित्यिक अिषुवलाद िी िै।
िै िी, वि सलांस्ृवतक झरोखला भी िै। संदभ्य-ज्लाि की क्षमतला
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भी िै।” ववषर् में आए तीिों र्दबंधों को समझ लेिे क र्चिलात अब िम
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मषुख् ववषर् क अतग्यत सलाहित्यिक अिषुवलाद की वस्षुब्स्वत कला
मररे र्वचार में सांस्ृर्तक सतु का कायद्ध वस्तः सलाहित्यिक वण्यि संक्षेर् में करेंगे।
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अिषुवलाद िी करतला िै। इसकला कलारण भी स्टि िै। जैसला नक सभी
जलािते िैं नक सलाहियि को समलाज कला दर्ण इसी अथ्य में किला साष्हत्यिक अनुवाद द्ारा भारतरीय संस्ृर्त का
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जलातला िै नक वि लेखक क समसलामशर्क सलामलाशजक र्ररवेश को वैशविक र्वस्ार
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अहभव्यशक्त प्रदलाि करतला िै। संस्त और हिदी सलाहियि िे सदला िी ववदशी ववद्लािों को बहुत
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