Page 33 - आवास ध्वनि
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कलार्ला्यलर्ी संदभयों में अिषुवलाद की भलाषला िोिला िै। “प्रशलासनिक दश क अशधकतर लोगों द्लारला बोली तथला समझी जलाती िै।
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भलाषला क रूर् में हिन्ी कला स्वरूर्” ववषर् से िै, शजस र्र व्यलार्क रलाष्ट में भलाविलात्मक एकतला स्लाहर्त करिे तथला उसक उत्लाि
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ववषर् ववचलार-ववमश्य और ववश्षण की आज क संदभयों में बहुत व ववकलास में भलाषला कला मित्वर्ण्य स्लाि िोतला िै । भलावलात्मक
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जरुरत िै। प्रशलासि में आिे वलाली व्यलाविलाररक कठठिलाइर्ों क एकतला तभी संभव िै, जब र्ूरे रलाष्ट में भलावों क आदलाि-प्रदलाि
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कलारण र्द्यहर् एक ऐसी लचीली रलाजभलाषला िीवत को स्वीकलार में कोई कठठिलाई ि िो िो अथला्यत आदलाि-प्रदलाि कला कोई एक
नकर्ला गर्ला िै, शजससे वत्यिी की भूलों से आतंनकत िोकर कोई मलाध्यम िो। र्ि कलार््य दशी भलाषला िी कर सकती िै इसललए
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कम्यचलारी हिन्ी क प्रर्ोग क प्रवत निरुत्सलाहित ि िो। र्िलाँ ध्यलाि भलावलात्मक एकतला कला कलार््य िमलारी रलाष्टभलाषला हिन्ी िी कर
दिे की बलात र्िी िै नक प्रोत्सलािि की दृहटि से तो र्ि िीवत सिी िै सकती िै। मैशथली शरणगप्त िे भी अर्िी भलाषला र्र बल हदर्ला
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र्रन् प्रर्ोगकतला्य को थोड़ला सलावधलाि तो रििला िी िोगला क्ोंनक और किला नक -
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वत्यिी अथवला उच्लारण कला थोड़ला-सला अतर कई बलार अथ्य में भलारी
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उलट-िर कर दतला िै। प्रशलासि कला मंरिलालर् से लेकर निम्नतर “सजसको न डनज भा्षा तथा डनज दश का अष्भमान है,
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ववभलागों तक एक संरचिलात्मक ढलाँचला िोतला िै। उसमें सप्रेषण क वह नर नहीं नरपशु डनरा है और मृतक समान है।”
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अिेक संदभ्य आते िैं। किीं वे मौखखक िोते िैं और किीं ललखखत अतः स्वलाहभमलाि एवं संववधलाि दोिों की अर्क्षला िै नक िम मूल
किीं वे चल र्रि क रूर् में िोते िैं, किीं-किीं कछ सूचिलाए एवं ववचलार, व्यविलार और िर प्रकलार कला सरकलारी एवं निजी कलार््य
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निदश स्लाि-सलाथ र्र जड़ िोते िैं। भलारत क भूतर्व्य रलाष्टर्वत अर्िी भलाषला हिन्ी में िी ।
ज्लािी जैल शसि िे सरकलारी कम्यचलाररर्ों कला आह्लाि करते हुए n बरी.एल शमाद्ध
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किला थला नक हिन्ी िी दश में एक मलारि ऐसी भलाषला िै, शजसकला सिलार्क प्रमख, रलाजभलाषला (सेवलानिवृत)
प्रर्ोग संर्क भलाष क तौर र्र नकर्ला जला सकतला िै, क्ोंनक र्ि ििको
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