Page 36 - आवास ध्वनि
P. 36
मातृभा्षा व्र्ति डनमाद्धण की भा्षा है
े
े
मलातृभूवम और मलातृभलाषला नकसी भी व्यशक्त, समलाज एवं र्लाठ्यक्रम क िी वि ववहभन्न नकस्- किलानिर्ों
माँ,
े
रलाष्ट कला निमला्यण करते िैं। इसललए किला क मलाध्यम से, ललाि एवं िलांट- िटकलार
े
गर्ला िै- मलाँ, मलातृभूवम और मलातृभलाषला कला से उसक भलाविलात्मक ववकलास को
े
कोई ववकल्प ििीं। शजस प्रकलार मलाँ आकलार दती िै। अर्िे जीवि में
षु
कला दषुग्धलामृत िवजलात शशश को व्यशक्त हभन्न-हभन्न भलाषलाओं में हभन्न-
हभन्न-हभन्न रूर्ों में सशक्ततला प्रदलाि हभन्न प्रकलार कला ज्लाि प्रलाप्त करतला
करतला िै उसी प्रकलार मलातृभलाषला िै, आवश्यकतला व समर् क
े
े
गभला्यवस्ला से लेकर बलालक क अिषुसलार वि उसे भूलतला भी रितला
ववकलासक्रम की ववहभन्न अवस्लाओं िै। लेनकि मलाँ की शशक्षलाए अथवला
ं
े
तक व्यशक्त क व्यशक्तत्व को भलाषला उसे मृयिषु र्र्यंत र्लाद रिती िैं,
े
षु
आकलार दती िै। गभला्यवस्ला में िी इसललए मलाँ को बलालक की र्िली गरु
बलालक मलाँ क संवलाद द्लारला कई शब्दों मलािला गर्ला िै। आज ज्लाि-ववज्लाि एवं
े
कला ज्लाि प्रलाप्त कर लेतला िै। सव्यववहदत िै सूचिला तकिीक कला खूब ववस्लार
नक मिलाभलारत में वलणत अहभमन्यषु िलामक िो रिला िै। अग्जी को िी ज्लाि
ं
े
टि
षु
ं
र्लारि िे मलाँ सभद्रला क गभ्य में िी चक्रव्यूि भलाषला क रूर् में अगीकलार करिे
े
े
जैसी कठठि र्षुद्ध रणिीवत की शशक्षला की िोड़ लगी हुई िै। छोटे-छोटे
ग्िण कर ली थी। मलातला जीजलाबलाई िे अबोध बलालकों को आरंभ से िी
बलाल्यलावस्ला में िी शशवलाजी को मिलार्षुरुषों की अिेक गलाथलाओं घरों में और हिर ववद्यलालर्ों में अग्जी शसखलािे क अिेकववध
ं
े
े
े
क मलाध्यम से भलारतवष्य की सिलाति संस्ृवत और वीरतला कला प्रर्त्न जलारी िैं। अिेक बलार वबिला ववदशी भलाषला-ज्लाि क व्यशक्त
े
े
र्लाठ र्ढ़लार्ला। आगे चलकर र्िी बलालक भलारत गौरव छरिर्वत उर्लक्षत सला िी मिसूस करतला िै। इस िोि में क्ला िमिे अर्िी
े
शशवलाजी क िलाम से जलािला गर्ला। सयि क प्रर्ोग िलामक अर्िी मलातृ भलाषलाओं की उर्क्षला ििीं की िै? िमें अर्िी मलातृ भलाषलाओं क
े
े
े
े
आत्मकथला में गलांधी जी िे भी ललखला िै- मेरे मि र्र र्ि छलार् सौंदर््य को समझिला और अगीकलार करिला चलाहिए। आज भी अिेक
ं
रिी िै नक मलातला सलाध्वी स्ती थीं। वे बहुत श्द्धलाल थीं। वबिला ग्लाम,अचलों व सदूर क्षेरिों में ऐसी प्रवतभलाए िैं शजन्हें मलातृभलाषला में
षु
ं
षु
ं
र्ूजला-र्लाठ क कभी भोजि ि करतीं।... मलातला व्यविलार कशल थीं। ज्लाि और शशक्षला क द्लारला आगे ललार्ला जला सकतला िै। मेरे सर्िों
षु
े
े
रलाज दरबलार की सब बलातें वे जलािती थीं। रनिवलास में उिकी बषुलद्ध कला भलारत िलामक र्षुस्क में गलांधीजी िे मेरला अर्िला अिषुभव एवं
की अच्ी कदर िोती थी। मैं बलालक थला। कभी-कभी मलातला जी प्रलांतीर् भलाषलाए शीष्यक से हिदी एवं भलारतीर् भलाषलाओं क मित्व
े
ं
ं
षु
मझे भी अर्िे सलाथ दरबलार गढ़ ले जलाती थीं। “बला- मलाँसलािब” क को वलणत नकर्ला िै। उन्होंिे ललखला िै- 12 बरस की उम् तक मिे
े
टि
ैं
षु
षु
सलाथ िोिे वलाली बलातों में से कछ मझे अभी तक र्लाद िैं। कछ जो भी शशक्षला र्लाई वि अर्िी मलातृभलाषला गजरलाती में िी र्लाई थी...
षु
षु
हदि र्िले िी प्रधलािमंरिी िरेंद्र मोदी की मलाँ िीरलाबला कला निधि शजल्त तो चौथे सलाल से शरू हुई... िर एक ववषर् मलातृभलाषला
षु
हुआ। उस समर् भी अिेक समलाचलार र्रिों में र्ि समलाचलार छर्ला क बजलार् अग्जी में िी र्ढ़िला र्ड़ला... र्ि अब मैं जरूर दखतला हू ँ
ं
े
े
े
की िीरलाबला िे िी िरेंद्र मोदी को एक अच्ला मिषुष्य बििे व रलाष्ट नक शजतिला गलणत, रेखलागलणत, बीजगलणत, रसलार्िशलास्त और
सेवला की शशक्षला दी। स्टित: मलातृभलाषला व्यशक्त निमला्यण की भलाषला ज्योवतष सीखिे में मझे 4 सलाल लगे,अगर अग्जी क बजलार्
े
े
षु
ं
िै। मलातृभलाषला मलाँ भलाषला िोती िै, शजसे बलालक सबसे र्िले अर्िी गजरलाती में उन्हें र्ढला िोतला तो उतिला मिे एक िी सलाल में आसलािी
ैं
षु
षु
मलाँ से सीखतला िै। मलाँ िी बलालक को सबसे र्िले वबकिल से सीख ललर्ला िोतला... शशक्षला कला मलाध्यम तो एकदम और िर
े
सलाधलारण एवं ठठ भलाषला में हर्तला, र्ररजिों एवं आसर्लास क िलालत में बदलला जलािला चलाहिए और प्रलांतीर् भलाषलाओं को उिकला
े
ृ
प्रकवत- र्र्ला्यवरण आहद से र्ररशचत करवलाती िै। वबिला नकसी न्यलार् संगत स्लाि वमलिला चलाहिए। ध्यलातव्य िै नक गलांधी जी द्लारला
36