Page 11 - चिरई - अंक-3
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िुरन्द् क ु मेार
महाप्रबंधक (पररयोजना / राजभाषा)
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लकाता क्षेत्ीय काया्कलय ने “धचरई" क तृतीय सस्रण का प्रकाशन कर राजभाषा
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को नीनत के प्रनत अपनी धजम्दारी का ननवा्कह करते हुए नहन्ी के प्रचार-प्रसार हेतु एक
स्वागत योग्य प्रयास नकया ह।
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मुझे पूण नवविास ह नक कोलकाता क्षेत्ीय काया्कलय क सभी कानम्कक इस पनत्का से प्रेररत
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होकर राजभाषा नहन्ी क सरल और सहज रूप को नदन प्रनतनदन क सरकारी कामकाज में अपना
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कर नहन्ी क भनवष्य को और उज्ज्ल बनाने में सराहनीय योगदान दगे।
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इस पनत्का में लेख क माध्यम से महत्पूण्क भूनमका ननभाने वाले सभी कानम्ककों की मैं
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सराहना करता हू तथा क्षेत्ीय काया्कलय को इस पनत्का क सफल प्रकाशन की बधाई दता हू।
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आशा करता हू नक भनवष्य में भी यह सकारात्मक प्रयास जारी रहगा।
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शुभकामनाओं सनहत।
सुरेन्द् कुमार
महाप्रबधक (पररयोजना / राजभाषा)
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"पवििी भाषा का ककसी स्तंरि राष्ट् क राजकाज और लिक्ा की भाषा हडको, क्त्रीय काययालय, कोलकाता करी अर्वार्षिक हहन््दरी गह पहत्का 11
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होना सांस्पतक िासता ह।" - वाल्टर चेपनंग