Page 62 - आवास ध्वनि
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गणतन्त् ष्दवस – मरा अनुभव
                                                                    रे

                                           ं
                                                ँ
                              “आहद हू, में अत हू, में प्रलारंभ हू, में अिंत हू, मैं संगीत हू, मैं ियि हू ँ
                                      ँ
                                                                                ँ
                                                                                     ृ
                                                          ँ
                                                                     ँ
                                                                 े
                                                                                     ँ
                                  मेरे वबिला अधूरे िो तम, मैं भलारत क ववकलास की प्रिरी हू...
                                                     षु
                                                                      ँ
                          मैं शशक्त हू, मैं प्रलाण हू, मैं िर चेिरे की मस्लाि हू, मैं िर घर कला कल्यलाण हू, ँ
                                              ँ
                                                               षु
                                   ँ
                               मैं अमृत कलाल कला अमृत हू, मैं अमृत कलाल क िवि कला कयि हू, ँ
                                                       ँ
                                                                        े
                                                                                   ृ
                                िलाँ, मैं िलारी हू, ववकशसत भलारत की बरलाबर की भलागीदलारी हू ....”
                                                                                     ँ
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                                                                                              े
                                             े
                 रत को अर्िे हृदर् में संजोए, दश की प्रगवत में     सौंर्ला गर्ला। इि सभी ललाभलाशथर्ों क उिक गंतव्य स्लाि से आिे-
                                                                                          े
                                                                                      टि
           भा
                                                                    े
                                          े
                 प्रयिक्ष व अप्रयिक्ष र्ोगदलाि दिे वलाले, दश क कोिे   जलािे क ललए उशचत र्लातलार्लात की व्यवस्ला, उत्तम िोटलों में
                                                  े
                                                     े
         कोिे से आर्े तमलाम भलारतवंशशर्ों को, जो आज अर्िे आर् को   ठिरिे की व्यवस्ला, बहढ़र्ला खलाि-र्लाि की व्यवस्ला, तथला उि
                                                                                                          े
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         गौरवलास्तवित व रोमलाशचत मिसूस कर रिे िैं, 75वें गणतंरि की   सभी को गणतंरि हदवस की र्रेि हदखलािे इयिलाहद क समस्
          षु
         शभकलामिलाए....”                                       प्रबंध ििको द्लारला उच् स्र र्र नकए गए।
                  ं
                                े
         र्ि शब्द दश की रलाजधलािी क हृदर् र्थ से,  भव्य र्थ अथला्यत्
                  े
                                                          े
         कत्यव्य  र्थ  से  उद्ोवषत  िो  रिे  थे।  अवसर  थला,  इस  वष्य  क
         गणतंरि हदवस की र्रेि कला, शजसकला थीम थला - ववकशसत भलारत
         और ववकशसत भलारत की ववकशसत िलारी। इस बलार िलारी शशक्त
         क सव्यस्व, सव्यरि, कशल िेतृत्व क र्रचम, रलाष्ट निमला्यण, भलारत
                                    े
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         क गौरव की गलाथला में िलारी क अद्भषुद सिर्ोग कला, सलाक्षी बििे
         कला र्ल थला।
         आईर्े,  अब  आर्को  इस  कलार््यक्रम  की  ववस्त  जलािकलारी  से
                                              ृ
                        ँ
         अवगत करवलाती हू । मौका था हमाररे 75वें गणतंरि ष्दवस का
                                                                                                   षु
                                                                                            े
         इस वष्य आवलासि और शिरी कलार््य मंरिलालर्, भलारत सरकलार द्लारला   26 जिवरी अथला्यत् गणतंरि हदवस क हदि सबि 5 बजे सभी
                                                                             े
         सरकलार की ववहभन्न ललाभकलारी व कल्यलाणकलारी र्ोजिलाओं, जैसे   अवतशथर्ों को उिक िोटल से मेट्ो द्लारला रलाजीव चौंक मेट्ो स्टेशि
                                                                                                   े
                                                                                 े
         प्रधलािमंरिी आवलास र्ोजिला, उज्ज्लला र्ोजिला, स्व-निशध र्ोजिला   ले  जलार्ला  गर्ला,  शजसक  ललए  मेट्ो-र्लास/नटकट  कला  प्रबंध  भी
                                                                                      षु
                                                                                               े
                                                                                           े
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                  े
         इयिलाहद,  क  कई  ललाभलाशथर्ों  को  भलारत  क  ववहभन्न  रलाज्यों  से   ििको द्लारला नकर्ला गर्ला थला। सरक्षला क मद्िजर, र्षुललस द्लारला कई
                                                                                                           ँ
                                                                               ं
                                                                                   े
         गणतंरि हदवस की र्रेि दखिे क ललए हदल्ी आमंहरित नकर्ला   चरणों र्र कड़ी चेनकग क र्चिलात्, कत्यव्य-र्थ र्र र्हुच कर,
                                  े
                             े
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         गर्ला। आवलासि और शिरी कलार््य मंरिलालर्, जो की ििको कला   सभी ललाभलाशथर्ों को उिक ललए, मंरिलालर् द्लारला आरलक्षत स्लािों
                                                टि
                                                       े
         प्रशलासनिक मंरिलालर् िै, द्लारला ििको को इि ललाभलाशथर्ों की दख-  र्र वबठलार्ला गर्ला, सभी मेिमलािों से बलात करिे र्र ज्लात हुआ नक
                                                                                   े
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                                               षु
         रेख िेत कलार््य सौंर्ला गर्ला । इसी कलार््यक्रम क सचलारू आर्ोजि   गणतंरि हदवस की र्रेि दखिे कला उिकला र्ि र्िलला मौकला थला,
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                                                                    े
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         क ललए मेरे सलाथ-सलाथ, ििको क कई अशधकलाररर्ों की ड्टी   शजसक ललए वे अयिंत उत्सलाहित हदख रिे थे।
                                                                                                        े
                                                                                                 े
         लगलाई गई। सभी अशधकलाररर्ों को ववहभन्न रलाज्यों से आिे वलाले   इससे र्िले नक गणतंरि हदवस की र्रेि क आगे क द्रश्य कला
         मेिमलािों की उशचत दखभलाल करिे क उद्श्य से, अलग अलग    वण्यि नकर्ला जलार्े, आइर्े आर्को कत्यव्य र्थ की एक झलक
                                      े
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                                                                                                      े
                                    षु
         ग्षुर्ों  में  ववभलाशजत  नकर्ला  गर्ला,  मझे  झलारखण्ड  रलाज्य  से  आिे   से अवगत करवलाती हू। सललामी मंच क सलामिे कसररर्ला, विेत
                                                                                              े
         वलाले र्ी एम ए वलाई (PMAY) एवं िगर निगम (MUNCIPAL     व िरे रंग से भलारत कला मलािशचरि उकरला गर्ला थला तथला फ़लों की
                                                                                           े
                                                                                                          ू
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         CORPORATION)  क  ललाभलाशथर्ों  की  आवभगत  िेत  कलार््य   र्ंखषुनड़र्ों से ललखला गर्ला थला- समृद्ध भलारत, सशक्त भलारत.
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