Page 64 - आवास ध्वनि
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शलाशसत प्रदशों, मंरिलालर्ों व ववभलागों की मिमोिक झलानकर्लां क बलाद, प्रधलािमंरिी जी सभी दश्यकों से वमलिे लगे. दश्यक
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कत्यव्य र्थ र्र सललामी मंच क सलामिे से गजरीं। रलाम की झलाँकी, अर्िला िलाथ हिललाकर प्रधलािमंरिी जी कला अहभवलादि कर रिे थे
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निशजटल झलाँकी, ववदश मंरिलालर् की झलाँकी, जी 20- वलासदव व प्रधलािमंरिी जी भी उिकला अहभवलादि स्वीकलार कर रिे थे. िमलारे
कटषुम्बकम् की झलाँकी, िी आर िी ओ की झलाँकी, शजसमें ललाभलाथती मलाििीर् प्रधलािमंरिी जी क मषुख् व अर्िे अवतशथ थे.
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रक्षला, भूवम, वलार्षु, समद्र की प्रिरी, वमसलाइल, इयिलाहद क क्षेरि प्रधलािमंरिी जी िे उि दशवलाशसर्ों कला सम्लाि नकर्ला, शजन्होंिे
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में महिललाओं क प्रर्लास व उिकी भलागीदलारी को दशला्यर्ला गर्ला। कत्यव्य र्थ क निमला्यण कला कलार््य नकर्ला थला. प्रधलािमंरिी जी िे
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महिललार्ों द्लारला ऊजला्य से संचलाललत ववकशसत भलारत की संकल्प किला नक र्े दशवलासी िैं, आम जि िैं, र्े दश सेवला करते िैं. तो
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र्लारिला को दख िम सव रोमलाशचत िो उठ. भलारतीर् िौसेिला की जिभलागीदलारी को बढलावला दते हुए अर्िे मेिमलाि क तौर र्र इन्हें
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झलाँकी में भी सभी भूवमकलाओं और रैन्क् में िलारी शशक्त कला बललार्ला गर्ला िै. उन्होंिे किला नक जब भी ववजर् कला समर् िोतला
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प्रवेश। सच में, विलाँ उर्ब्स्त जि समूि रोमलाशचत, गम्यजोशी से िै, वविर् कला भी िोतला िै. सच र्ि र्रस्र प्रगलाड़ और स्ेि क
सरलाबोर थला। र्ल थे.
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रलाष्ट प्रेम की भलाविला से ओतप्रोत 1500 ियिलांगिलाओं क ियि इस ववशेष हदि कला हिस्ला बििे क ललए, मै, ििको कला आभलार
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प्रदश्यि िे विलां उर्ब्स्त सभी दशला्यकगणों को मंरिमग्ध कर हदर्ला, प्रकट करती हू नक शजन्होंिे मझे मेरे जीवि में र्िली बलार गणतन्त्
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शजिकला सन्श थला – एक भलारत, श्ष्ठ भलारत. इसमें एिसीसी, हदवस कला, कत्यव्य र्थ से, सलाक्षी बििे कला मौकला हदर्ला।
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एिएसएस, ववदश मंरिलालर्, सलांस्ृवतक मंरिलालर् क महिलला र्े मेरे ललए कभी ि भूलिे वलाले र्ल थे। खैर, र्रेि समलाप्त िोिे क
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कललाकलारों द्लारला मोहििीअट्टम, भरतिलाट्म, मलणर्षुरी, उिीसी, बलाद िम अर्िे सभी ललाभलाशथर्ों क सलाथ िोटल वलाहर्स आ गए।
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कत्क इयिलाहद कला प्रदश्यि नकर्ला गर्ला। अगले हदि, सभी मेिमलािों को प्रधलािमंरिी संग्िलालर्, सिदरगंज
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अत में, वलार्षु ववचलि करते उन्नत ववमलाि, कत्यव्य र्थ र्र प्रदशशत टोम्ब व तलालकटोरला स्टेनिर्म भ्रमण क ललए ले जलार्ला गर्ला।
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भलारतीर् सेिला क अस्त-शस्त कला प्रदश्यि. वलास्व में भलारत की भलारत क मलाििीर् आवलासि और शिरी कलार््य मंरिी, श्ी िरदीर्
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उन्नवत और प्रगवत और सम्द्ध सलांस्ृवतक ववरलासत की, मैं, आज शसि र्षुरी जी सहित, कई उच् स्रीर् र्दलाशधकलाररर्ों िे सभी
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इस कत्यव्य र्थ से सलाक्षी बिी. ऐसे र्लों में िम संकल्प लेते िैं ललाभलाशथर्ों से भेंट की। उिको भलारत सरकलार से वमलिे वलाली
नक “िे वन्िीर् भलारत, अहभिंदिीर् भलारत, िे न्यलार् बंध, निभ्यर् सभी ललाभकलारी र्ोजिलाओं से अवगत करवलार्ला गर्ला और भववष्य
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निबयंधनिर् भलारत, र्लािी र्ल्व, अल्वनिर् भलारत, िूरला, मम्यत्व में भी कई अन्य र्ोजिलाओं क कलार्ला्यस्तवित िोिे कला आविलासि हदर्ला
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सलारला तझ में समलां रिला िै, भलारत िमलारला कसला सषुन्र सषुिला रिला िै, गर्ला, सभी ललाभलाथती, मंरिी जी से सलाक्षलात्कलार कर अयिंत खश
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भलारत िमलारला कसला सषुन्र सषुिला रिला िै..... हुए। उन्होंिे मलाििीर् मंरिी जी को र्ि भी बतलार्ला नक सरकलार
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की इि सभी ललाभकलारी र्ोजिओं से उिक जीवि कला स्र कलािी
सभी लोगों में उत्सलाि थला. सभी इस र्ल को जी लेिला चलािते सधर गर्ला िै. आज स्वनिशध र्ोजिला से, अर्िे लघ रोजगलार को
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थे. इस र्ल को र्लादों में बसला लेिला चलािते थे. र्रेि समलाप्त िोिे शरू कर, एक सखद जीवि र्लार्ि कर रिे िैं. उज्ज्लला र्ोजिला से
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