Page 66 - आवास ध्वनि
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जरीवन में खरेलों का महत्त्
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त्यमलाि जीविशैली में आज मिषुष्य जब अिेक रोगों र्ि सलावबत िो गर्ला नक खेल मिषुष्य क ववकलास में बलाधक
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से ग्स् िो रिला िै। ऐसे समर् में खेलों कला ििीं वरि् सिलार्क िैं। बगैर शैक्षलणक उर्लब्धि क भी सशचि
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मित्त् स्वर्मेव स्टि िो जलातला िै। खेलों द्लारला ि कवल तेंदषुलकर द्लारला अशजत र्श, सम्लाि, धि लोकहप्रर्तला आहद
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िमलारी हदिचर्ला्य निर्वमत रिती िै बब्कि र्े िलाई लिि प्रेशर, इस बलात क संदर उदलािरण िैं। सशचि तेंदषुलकर द्लारला दश कला
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लिि शगर, मोटलार्ला तथला हृदर् रोग जैसी बीमलाररर्ों की सवपोच् सम्लाि ‘भलारत रत्न’ प्रलाप्त करिला, वत्यमलाि र्ररदृश्य में
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संभलाविलाओं को भी न्यूि करते िैं। इसक अवतररक्त, खेल खेलों की मित्तला को दशला्यतला िै। आज सशचि िी ििीं बलनक
द्लारला िमें स्वर्ं को चषुस्-दषुरुस् रखिे में भी मदद वमलती िै, सशील कमलार, सलानिर्ला वमजला्य, अहभिव वबन्द्ला, सलाइिला ििवलाल,
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शजससे िम अर्िे दलाशर्त्वों कला निव्यिि सहक्रर्तलार्व्यक कर मैरी कॉम व मिेंद्र शसि धोिी जैसे िलामों िे सिलतला व समृलद्ध
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र्लाते िैं। एवं शलाि और शौकत क जो आर्लाम गढ़ िैं, उसक समक्ष
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संस्लागत शशक्षला कला प्रश्न गौण िो जलातला िै।
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“मैंन वाटरलू क युर्द में जो सफलता प्राप्त की उसका
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प्रशशक्षण ईटन क मैदान में ष्मला।” सरकलार खेल में ख्लावत प्रलाप्त खखललानड़र्ों को अिेक र्षुरस्लारों
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िर्ोललर्ि को र्रलाशजत करिे वलाले एिवि िेल्सि की र्ि से सम्लानित करती िै, अजषु्यि एवं द्रोणलाचलार््य जैसे र्षुरस्लार इसी
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र्शक्त खेल क मित्त् को बर्लां करिे क ललर्े र्र्ला्यप्त िै। खेल ि श्णी क खेल रत्न र्षुरस्लार िै जो भलारत में खेलों में सव्यश्ष्ठ
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कवल िमें स्वस् रििे में र्ोगदलाि दकर सक्षम बिलाते िैं बलनक प्रदश्यि िेत सरकलार द्लारला खखललानड़र्ों और गरुओं को प्रदलाि
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वत्यमलाि र्षुग की संकीण्यतला वलादी सोच क ववरुद्ध िमें निष्क्ष, नकर्े जलाते िैं। िमलारे दश की कई महिललाओं जैसे- र्ी.टी. उषला,
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सहिष्णषु तथला वविम् बिलाकर एक बेितर मलािव संसलाधि क रूर् मैरी कॉम, सलार्िला ििवलाल एवं सलानिर्ला वमजला्य िे दषुनिर्ला भर
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में बदलते िैं। खेलों की मित्तला को दषुनिर्ला क प्रयिेक समलाज में खेल में कलािी िलाम कमलार्ला िै और दश को गौरवलास्तवित
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व सभ्यतला में स्वीकवत वमली िै। रलामलार्ण, मिलाभलारत से लेकर नकर्ला िै। खेलों को भलारतीर् संस्ृवत एवं एकतला कला प्रतीक
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ग्ीको-रोमि दत-कथलाओं में िोिे वलाले खेलों कला शजक्र इस भी मलािला जलातला िै। खेल िमलारी प्रगवत को सनिश्चित कर जीवि
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बलात कला प्रमलाण िै। र्षुिः ओलंहर्क की प्रलारंहभक शरुआत र्ि में सिलतला प्रदलाि करते िैं। आज सरकलारी व निजी दोिों क्षेरिों
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स्टि करती िै नक खेलों को संस्लानिक मित्त् वमलतला रिला िै। में खखललानड़र्ों क ललर्े िौकररर्लाँ र्लािे क कई अवसर िै। रेलवे,
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एक अच्ला जीवि जीिे िेत अच् स्वलास्थ् कला िोिला बहुत एअर इनिर्ला, भलारत र्ेट्ोललर्म, ओ.एि.जी.सी., आई-ओ-सी-
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जरूरी िै। शजस प्रकलार शरीर को अच्ला और स्वस् रखिे क जैसी सरकलारी संस्लाओं क सलाथ-सलाथ टलाटला अकलादमी, शजदल
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ललर्े व्यलार्लाम की आवश्यकतला िोती िै उसी प्रकलार खेलकद ग्षुर् जैसे निजी समूि भी खेलों व खखललानड़र्ों क ववकलास व
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कला भी स्वस् जीवि िेत अयिशधक मित्त् िै। खेल, बच्ों और प्रोत्सलािि िेत प्रवतबद्ध िै। इसक अललावला आई.र्ी.एल.,
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र्षुवलाओं क मलािशसक तथला शलारीररक ववकलास दोिों िी क ललर्े आई.बी.एल., एच.सी.एल., जैसी लीगों तथला स्लािीर् क्बों
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अवत आवश्यक िै। िई र्ीढ़ी को नकतलाबी ज्लाि क सलाथ-सलाथ क स्र र्र भलारी निवेश िे खखललानड़र्ों क ववकल्प को बढ़लािे
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खेलों में भी रुशच बढ़लािे की जरूरत िै। क सलाथ-सलाथ उन्हें बेितर मंच व अवसर उर्लधि करलार्ला िै।
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इसे दखते हुए अब किला जला सकतला िै नक - “खलोग-कदोग रे
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र्रंर्रलागत रूर् से भलारत क मध्यम वग्य की धलारणला रोजगलार क
तो बनोगरे नवाब।”
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ललिलाज से खेलों क प्रवत िकलारलात्मक रिी िै। खेलकद को
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मिषुष्य क बौलद्धक ववकलास व रोजगलार प्रलाहप्त में बलाधक मलािते इससे र्ि स्टि िोतला िै नक खेल से ि शसि स्वलास्थ् बब्कि
हुए किला जलातला थला नक, “र्ढ़ोगे-ललखोगे तो बिोगे िवलाब, रोजगलार एवं र्श तथला सम्लाि भी प्रलाप्त िोतला िै। खेल द्लारला
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खेलोगे-कदोगे तो िोगे खरलाब।” र्रंत बदलते समर् क सलाथ रलाजिवतक लक्ष् भी प्रलाप्त नकर्ला जला सकतला िै। कई दशों में
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