Page 83 - आवास ध्वनि
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सुन्रकाण्ड की मष्हमा


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                 रलामचररत  मलािस  क  सभी  कलाण्डों  क  िलाम  कला    र्हद ‘तलसीदलास जी’ चलािते तो इस  कलाण्ड कला िर्ला िलाम रख
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                 अथ्य समझ र्लािला कठठि ििीं िै। जैसे प्रथम कलाण्ड   सकते थे । नकन् उन्हें भी र्ि िलाम इतिला हप्रर् लगला नक उन्होंिे
                                                                            षु
         कला  िलाम  ‘बलाल-कलाण्ड’  जो  सरलतला  से  समझला  जला  सकतला  िै   ‘सषुन्रकलाण्ड’ िलाम ज्यों कला यिों रख हदर्ला।
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         नक इसमें प्रभ रलाम की बलाल-लीललाओं कला वण्यि िै, ‘अर्ोध्यला   रलामचररत मलािस क सभी  कलाण्डों में ‘सषुन्रकलाण्ड’ सबसे अशधक
                                                                             े
         –कलाण्ड’ में अर्ोध्यला की भूवम, रलाज्य को लेकर सलारला वववरण   जिहप्रर् िै। जि श्ृद्धला की दृहटि से तथला ववषर् की गंभीरतला से र्ि
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         िै। ‘अरणर्-कलाण्ड’ में प्रभ रलाम क दण्कलारण् में निवलास करते   कलाण्ड बहुत मित् वर्ण्य िै। सलाधलारण मिषुष्य क मि में अिवगित
                                                                               ू
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         हुए  वि  की  लीलला  िै।  ‘नकग्ष्कन्ला–कलाण्ड’  में  नकग्ष्कन्लार्षुरी   कलामिलाए ववद्यमलाि िोती िैं । सषुन्रकलाण्ड द्लारला इि सभी कलामिलाओं
                                                                     ं
         से संबंशधत कथला िै। ‘लंकला-कलाण्ड’ में लंकला की भूवम र्र र्षुद्ध   की र्वत की जलाती िै। शजस प्रकलार गीतला में निष्कलाम कम्यर्ोग की
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         कला वववरण िै। इसी प्रकलार ‘उत्तरकलाण्ड’ रलामलार्ण कला उर्संिलार   महिमला कला वण्यि नकर्ला गर्ला िै, उसी प्रकलार रलामचलाररत मलाि में
         िै। इसमें रलामलार्ण में उठलार्े गर्े प्रश्नों कला उत्तर िै, इसललए इसे
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         ‘उत्तर-कलाण्ड’ किला गर्ला। इस प्रकलार रलामलार्ण क ‘सलात’ में से   भी निष्कलामतला की महिमला कला वण्यि नकर्ला गर्ला िै।
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         ‘छ:’  कलाण्डों कला िलामकरण सरलतला से समझ आतला िै । लेनकि   अगर कोई बड़ला व्यशक्त अमर्ला्यहदत कलार््य करे तो उसे दखकर बरला
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         सलातवें  कलाण्ड  कला  िलामकरण  ‘सषुन्रकलाण्ड’  कछ  ववशचरि  तथला   लगतला िै र्र विीं छोटे बच् की चंचलतला को दखकर मलातला-
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         अद्भषुद प्रतीत िोतला िै। र्ि िलामकरण कवल ‘तलसीदलास जी’ िे   हर्तला तथला गरू प्रसन्न िोते िैं। रलामचररतमलािस कला अहभप्रलार् िै
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         िी ििीं अहर्त ‘मिवष बलाल्मीनक द्लारला भी प्रर्ोग नकर्ला गर्ला िै।   नक वृशत्त अगर ििषुमलाि जी की तरि िो तो सव्यश्ष्ठ िै र्र र्हद




































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