Page 82 - आवास ध्वनि
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                                                                                   े
         ष्हन्री का काल र्वभाजन                                अब भलारत क िर छोटे-बड़ क्षेरि में लोकहप्रर् बोललर्ों में लेखि
                                                                              षु
                                                               सृजि कला कलार््य शरू िो गर्ला थला। इन्ही बोललर्ों में सलाहियि
               े
         हिन्ी क कलाल ववस्लार की बलात नक जलाए तो हिन्ी कला कलाल
                                                               सज्यि िोिे क कलारण र्ि बोललर्लाँ भलाषलात्मक रूर् ले रिी थी।
                                                                         े
         ववस्लार एक िजलार ईसवी से आज तक िै और आगे भी रिेगला।
                                                                                           षु
                                                                       े
                                                                                                े
         इस लोक प्रचललत भलाषला की समर्-समर् र्र शब्दों तथला अन्य   1225 ई. क लगभग और अमीर खसरों क समर् तक हदल्ी
                                                                                                              षु
                                                               तथला आस-र्लास खड़ी बोली हिन्ी कला स्वच् रूर् उभर चकला
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                                    ँ
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                                                 ँ
         प्रर्ोगों क आधलार र्र कई शलाखलाए और उर्शलाखलाए िटती रिी
                                                                                      े
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         िैं। हिन्ी क ववकलास को तीि कलाल खंिों में ववभलाशजत कर सकते   थला और बोलचलाल की भलाषला क रूर् में र्े र्ूरी तरि प्रवतवष्ठत िो
                                                                षु
                                                               चकी थी। मध्यकलाल में िी निगषु्यण निरलाकलारवदी, संत कववर्ों
                                           षु
         िैं। 1. आहदकलाल, 2. मध्यकलाल और 3. आधनिककलाल
                                                               की रचिलाओं में खड़ी बोली कला र्ूरला र्षुट वमलतला िै। सलाथ िी
                                                                                                         े
         1. आष्दकाल                                            हिन्ी भलाषला में िलारसी, अरबी, तषुककी आहद आगत ववदशी शब्दों
                                                               की संख्ला अशधक िोिे लगी थी। भलाषला की दृहटि से र्ि र्षुग
         आहदकलाल में अर्भ्रंश ‘भलाषला’ कला प्रर्ोग मौखखक और ललखखत
                                                       ृ
         भलाषला क रूर् में िो रिला थला। सलाथ िी कछ प्रलाकत तथला संस्त में   अर्िी क्षेरिीर् अथवला जिर्दीर् बोललर्ों कला स्वण्य र्षुग थला। इन्ही
                                      षु
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                                                               बोललर्ों में सलाहियि रचिला िोिे क कलारण र्ि बोललर्लाँ भलाषला बि
                                                                                        े
         भी लेखि इसी र्षुग में हुआ। सलाहियि में अर्भ्रंश कला प्रर्ोग िोिे
         क सलाथ-सलाथ बोलचलाल में आधनिक आर््यभलाषलाए और हिन्ी   गई, जो आगे चलकर हिन्ी की सिलार्क बिी।
                                                 ँ
                                   षु
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         की बोललर्लाँ अर्िला स्वरूर् ग्िण करिे लगी थी। कष्ण कमलार   3. आधुडनक काल
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         गोस्वलामी ललखते िैं नक, ‘‘इस कलाल में अर्भ्रंश तथला प्रलाकत कला
                                                               आधनिक र्षुग खड़ी बोली कला िी रिला िै। र्द्यहर् इसमें ब्रजभलाषला
                                                                  षु
         प्रभलाव हिन्ी र्र थला और उस समर् हिन्ी कला स्वरूर् निश्चित रूर्
         से स्टि ििीं िो र्लार्ला थला। इस कलाल में मषुख् रूर् से हिन्ी की   और खड़ी बोली कला वमश्श्त रूर् भी प्रचलि में रिला िै। ब्रजभलाषला
                                                               अशधकलांशतः र्द्य की िी भलाषला रिी, गद्य में इसकला प्रर्ोग िगंर्
         विीं ध्वनिर्लाँ (स्वर एवं व्यंजि) वमलती िैं, जो अर्भ्रंश में प्रर्षुक्त
                                                                       ं
                                                                                              े
                                                                         े
         िोती थी।’’  आहदकलालीि हिन्ी भलाषला र्र अर्भ्रंश भलाषला कला िी   िी रिला। अग्जी शलासि की स्लार्िला क समर् िी खड़ी बोली
                                                                                े
                                                               हिन्ी कला ववस्लार बड़ र्ैमलािे र्र िोिे लगला थला।
                                      े
         अशधक प्रभलाव थला। धीरे-धीरे भलाषला क ववचलार क सलाथ अर्भ्रंश
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                                                                                                                े
                                       षु
         शब्द रूर् कम िोते चले गए र्ला वबकिल िी अप्रचललत िोकर   आधनिक कलाल क आरंभ में खड़ी बोली हिन्ी उदू, िलारसी क
                                                                             े
                                                                                                       ्य
                                                                  षु
                                                                     े
                                             ै
         रि गए। इससे हिन्ी भलाषला र्िली बलार अर्िी र्रों र्र खड़ी िोती   शब्दों क िजदीक रिी। सि् 1800 में िोट्य ववललर्म कॉलेज
                                                   ू
         हदखलाई दी। अप्रभ्रंश क बलाद खड़ी बोली हिन्ी िी र्ण्य रूर् से   की स्लार्िला हुई और इसमें हिन्ी तथला उदू क अध्यलार्ि और
                                                                                                  ्य
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                                                                                       षु
                                                                                                              े
                                                                                                            ं
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         ललखखत और मौखखक दोिों िी रूर्ों में हदखलाई दिे लगी। र्िलाँ   व्यलाकरण  लेखि  कला  कलार््य  शरू  करवलार्ला।  उस  समर्  अग्जी
                                                                                                  े
         भलाषला कला स्वरूर्, हक्रर्लाओं र्रसगपो आहद कला प्रर्ोग बढ़ला और   शलासि  क  कलारण  खड़ी  बोली  हिन्ी  में  अग्जी  शब्दों  कला  भी
                                                                      े
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                                                                                                                े
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                 ं
         िर्षुंसक ललग कला प्रर्ोग समलाप्त प्रलार् िो गर्ला। वलाक् रचिला में   वमश्ण िोिे लगला थला। स्वतंरितला क बलाद खड़ी बोली हिन्ी क
         भी शब्द कला क्रम निश्चित िोतला चलला गर्ला। इस प्रकलार हिन्ी कला   सलाथ अग्जी भी शलासि व जिसलाधलारण की भलाषला बि गई और
                                                                      े
                                                                    ं
         प्रथम र्ड़लाव शरू िो गर्ला और हिन्ी लोगों क बीच मौखखक   इसमें सरकलारी तथला गैर सरकलारी कलार्ला्यलर्ों में कलाम जोरों से िोिे
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         तथला ललखखत दोिों रूर्ों में अर्िला स्लाि बिलािे में सिलार्क हुई।  लगे, जो वत्यमलाि में जलारी िैं।
         2. मध्यकाल                                                                            n डॉ. नरीरज भारद्ाज
                                                                                                   सिलार्क आचलार््य
                     े
         भलाषला की दृहटि क मध्यकलाल में अर्भ्रंश भलाषला बहुत दूर रि गई थी
                                                                     श्ी ललाल बिलादषुर शलास्ती रलाष्टीर् संस्त ववविववद्यलालर्,
                                                                                                   ृ
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                षु
         और आधनिक भलारतीर् भलाषलाए अर्िला व्यशक्तत्व निखलार रिी थी।
                                                                                                        िई हदल्ी
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