Page 81 - आवास ध्वनि
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ष्हन्री भा्षा का र्वकास


                वि में बोली जलािे वलाली भलाषलाओं की संख्ला लगभग     ‘ष्हन्री’ शब्द की व्तपर्त और अथद्ध
                                                                                ु
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                तीि िजलार से भी ऊर्र मलािी जलाती िै। भलाषलाओं को   हिन्ी शब्द की व्यषुत्पवत क ववषर् में भलाषलावैज्लानिकों तथला हिन्ी
                                                                                   े
        वगतीकत  करते  हुए  भलाषलावैज्लानिकों  िे  ध्वनि,  व्यलाकरण  तथला   ववद्लािों िे अलग-अलग मत हदए िैं। हिन्ी शब्द कला सम्बन् हिन्ू
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        शब्द समूि आहद को आधलार बिलार्ला िै। र्लाररवलाररक सम्बन्ों   र्ला हिन् आहद शब्दों से मलािला जलातला िै और भलारतीर् र्रम्परलावलादी
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        क आधलार र्र भलाषलाओं कला, जो वगतीकरण नकर्ला गर्ला वि ‘भलाषला   संस्त र्नित मूल शब्द ‘हिन्षु’ िी मलािते िैं। जबनक हिन्षु शब्द
                                                                      ं
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        र्ररवलार’ क िलाम से जलािला जलातला िै। वववि की सभी भलाषलाओं को   में ‘ि’ संस्त शब्द ििीं िै, क्ोंनक नकसी भी प्रलाचीि ग्थ में
                                                                        ृ
                                                                                                            ं
        ध्यलाि में रखते हुए लगभग बलारि भलाषला र्ररवलारों की संकल्पिला   इसकला  प्रर्ोग  हुआ  ििीं  वमलतला।  भोललािलाथ  वतवलारी  ललखते
        वमलती िैं, शजिमें से भलारोर्ीर् र्ररवलार एक मषुख् र्ररवलार मलािला   िैं नक, ‘‘मझे इसकला प्रलाचीितम प्रर्ोग सलातवीं सदी क अवतम
                                                                                                          े
                                                                                                            ं
                                                                       षु
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        जलातला िै। भलारोर्ीर् र्ररवलार की दस शलाखलाए मलािी गई िैं। इसमें   चरण क ग्थ ‘निशीथर्णती’ में प्रथम बलार वमलला िै।’’  इस दृहटि क
                                                                       ं
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        भलारत, ईरलािी शलाखला क अन्ग्यत भलारतीर् आर्ला्यभलाषला, ईरलािी और   ‘हिन्षु’ शब्द मूलरूर् से संस्त भलाषला क शब्द ‘शसन्’ कला िलारसी
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                                                                                     ृ
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        दरदी उर्शलाखलाए आती िै। भलारतीर् आर््यभलाषलाओं को समझिे क   रूर्लांतरण िै। िमलारी प्रलाचीि ‘स’ ध्वनि ईरलाि की अवेस्ला आहद में
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        ललए कलाल की दृहटि में तीि वगयों में ववभलाशजत नकर्ला जला सकतला   ‘ि’ उच्ररत िोती रिी िै। ‘शसन्’ और ‘सप्तशसधवः’ आहद शब्द
                                                                                                  ं
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        िै र्िलला प्रलाचीि भलारतीर् आर््यभलाषलाए, इसमें संस्त को रखला   अवेस्ला में हिन्षु और िप्तहिन्व आहद वमलते िैं। ‘हिन्षु’ शब्द क
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        गर्ला िै। दूसरला मध्य भलारतीर् आर््यभलाषलाए, इसमें र्लाली(र्लालल),   ववकलास क सलाथ िी इसमें ध्वनिक ववकलास भी हुआ और इसमें
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                                                                       े
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        प्रलाकत और अर्भ्रंश को रखला गर्ला िै। तीसरला आधनिक भलारतीर्   ‘इ’ र्र बललाघलात िोिे क कलारण अयि ‘उ’ लप्त िो गर्ला और इसी
                                                                                         ं
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                                                                                 े
        आर््यभलाषलाओं में हिन्ी, बंगलालला, मरलाठी आहद को रखला गर्ला िै।   प्रकलार र्ि ‘हिन्षु’ शब्द ‘हिन्’ िो गर्ला। आगे चलकर हिन् शब्द
        इसी आधनिक भलारतीर् आर््यभलाषला में हिन्ी कला ववकलास लगभग   में ईरलािी क ववशेषणलाथ्यक प्रयिर् ‘ईक’ जषुड़िे से हिन्ीक शब्द
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                                                                       े
        1000 ई. (एक िजलार) क आस-र्लास हुआ।                     बिला, शजसकला अथ्य थला ‘हिन्ी कला’ इसी हिन्ीक कला ववकलास और
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                                                               ‘क’ क लप्त िो जलािे र्र ‘हिन्ी’ शब्द कला जन्म हुआ।
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