Page 30 - आवास ध्वनि
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                  पूर्णक थाा- जाीत की उपलब्धिब्धयांं सं पूर्ण........ तरोी देीदेी बोहुत   तसंल्लीी जारूरो �ोती �ै, ध्रुुवतारोा देूरो सं�ी, व� �ै तो। उसंक
                                                 क
                                                                                                े
                                                                                                       े
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                                 ं
                  बो�ादेुरोी सं यां� जिजादेगाी जाी चकी �ै”। नााजियांका अपना संंपूर्णक   निनाकट ना�ं  जाायांा जाा संकता, लनिकना उसं हिंदेशा संूचक मेंाना
                  जाीवना अपनां क प्रौमित संमेंहिंपत करो हिंदेयांा। जाीवना मेंं कठिठना   करो भाँवरो मेंं उतरोी हुई नााव को ठिठकाना लगाायांा जाा संकता �ै”।
                                                                                                   े
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                  ब्धिस्थामित-परिरोब्धिस्थात क बोादे भाी अपना हिं�त क लिलएँ कायांक करो,   लेखिखका ऋता श� नाारोी मेंना ना संंवदेनातत्त् को प्रौकट करोना  े
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                                                                                               े
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                                                               ं
                  अपनाी इच्छेाओंं का त्यागा करो हिंदेयांा। उपन्यासं ‘अमिगानापखी’   मेंं संफल रो�ी �ै।  भााषाा का संरोल एँव ब्धिस्थारो रूप प्रौकट निकयांा
                                                                                                   ं
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                  मेंं लेखिखका ना रिरोश्तों का भाारोीपना औरो बोोलिझलपना रूप को   �ै। लेखिखका में�रुहिंन्नसंा परोवजा ना  उपन्यासं ‘अकला-पलाश’ मेंं
                                                                                               े
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                  हिंदेखाना का प्रौयांासं निकयांा �ै। नाायांक जायांशंकरो संमेंयांानासंारो   नाारोी व्यूथाा को  हिंदेखायांा �ै –“हिंपताजाी, मेंाँ औरो बोच्चं को घरो
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                  अपना जाीवना को निनाखारोना क लिलएँ ज्योादेा सं ज्योादेा परिरोश्रमें   सं बोा�रो करो देते, चा�े भारोी बोरोसंात �ो, चा�े कड़कड़ाती ठ�
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                                                                       े
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                  करोता �ै। पढ़-लिलखकरो अपनाी मेंां औरो गााँव का नाामें भाी रोोशना   �ो।  निकसंी ना निकसंी बो�ाना इधरो फक हुएँ पासंकल की तरो� व�
                                                                                                ं
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                  करोनाा  चा�ता  �ै।  जायांशंकरो  अपनाी  मेंजाबोरोी  औरो  लोगां  की   लोगा था । कभाी बोड़ी बोुआ क संाथा कछ में�ीना काट आते, कभाी
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                  ईष्याक का कारोर्ण बोनाता जाा रो�ा �ै। जायांशंकरो शादेी क बोादे   देहिंदे�ाल कछ में�ीना काट आते, कभाी नानिना�ाल”। लेखिखका ना  े
                                                                                      े
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                  अपनाी पत्नाी को लेकरो में�ानागारो मेंं स्लोमें की एँक झोपड़ी मेंं   परिरोवेशगात संीधी-संरोल एँव सं�जा भााषाा का रूप स्पष्ट करो
                                                                                            ं
                  अपनाा जाीवना व्यूतीत करो रो�ा �ै। मिववा� मेंं जाो धना -रोाजिश   गा�रोी संंवदेनाा को अहिंभाव्यू� निकयांा �ै। उपन्यासं ‘शषा-यांात्रीा’
                                                                                                               े
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                  उसं प्रौाप्त हुई । व� अपनाी मेंाँ क संपत करो व� गााँव को छोड़   मेंं उषाा हिंप्रौयांंवदेा ना भाी भााषाा औरो संंवदेनाा का संश� रूप-
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                                                                                                    े
                                                                                     े
                  करो चला जााता �ै। गााँव एँव परिरोवारो वालं को इसं बोात का   स्वारूप स्पष्ट निकयांा �ै-“उसं अपना अदेरो देदे संा में�संसं �ो रो�ा
                                        ं
                                                                                                       क
                                                                                               े
                                                                                                              ू
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                                        ै
                  आभाासं ना�ं �ोता निक व� कसंा जाीवना जाी रो�ा �ै। मेंाँ लगाातारो   �ै, हिंदेल का देौरोा पड़त संमेंयां की पीड़ा सं भाी गा�रोा, पैनाा औरो
                                                                                                      े
                                                                                        े
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                  जायांशंकरो क पासं जााना का आग्रे� करोती �ै। परो जायांशंकरो   व्यूापक”। लेखिखका ना पात्रीं की वदेनाा को प्रौस्तुत करो, नाारोी
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                                                                                       े
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                  अपनाी वदेनाा निकसंी हिंदेखायां व� मेंना �ी मेंना अपनाी पीड़ा को   हृदेयां की पीड़ा करो प्रौस्तुत, संंत्रीासं एँव तनााव को भााषाा क
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                                        े
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                  व्यू�  करोत  हुएँ  क�ता  �ै-“अपनाी  मिवपदे-गााथाा  ना�ं  गाायांी   अनाकल व्यू� करोना का प्रौयांासं निकयांा �ै।
                                                                        ु
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                  निकसंी  क  संामेंनाे।  उल्टे  रोेशमेंी  मेंायांाजााल  मेंं  भारोमेंाएँ  रोखा”।
                                                                                                     ं
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                                                                                                             े
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                  लेखिखका संयांकबोाला ना पात्री जायांशंकरो की संंवदेनाा को हिंदेखाना  े  भााषाा को व्यू� करोना का अपनाा एँक ढांगा �ै, इसं स्पष्ट करोना  े
                                   े
                                                                                                           क
                                                                       े
                                                                                                              ं
                                                       े
                  का  प्रौयांासं  निकयांा  �ै।  जायांशंकरो  मेंाँ  को  अपना  संाथा  रोखनाा   क लिलएँ शजिशप्रौभाा शास्त्ी भाी जिसंद्ध�स्त �ै, उदेू, अग्रेेजाी औरो
                                                                         े
                                                                                                ु
                                                                                                          ं
                                                                                             े
                                   ू
                  चा�ता �ै । परो मेंजाबोरोी मेंं व� मेंाँ को अपना संाथा ना�ं रोख   मिवदेशी भााषाा का प्रौयांोगा करोक में�ावरों, अलकारों आहिंदे का
                                                      े
                                                                                              ं
                                           े
                  पाता।  मेंाँ भाी अपना बोटे-बोहू सं देूरो रो�ना की पीड़ा को झेल   प्रौयांोगा निकयांा गायांा �ै- “क्यों इमित�ाना क्यों लूंगाा, यां� आपना  े
                                  े
                                    े
                                                  े
                                                                                       ं
                                  ं
                  रो�ी �ै। ‘ठीकरोे की मेंगानाी’ मेंं नााजिसंरोा शमेंाक नाे  नाारोी मेंना की पीड़ा   क�ा  निक  आप  बोताएँगाी  तो..................।  शजिशप्रौभाा  शास्त्ी  ना  े
                                                                         े
                                                 े
                  को  संीधी-संपाटबोयांानाी मेंं प्रौस्तुत करोना का प्रौयांासं निकयांा �ै।   संंवदेनाा औरो भााषाा का स्वारूप स्पष्ट निकयांा �ै।  व�ी उपन्यासं
                                                                                                              े
                                                                                                    ृ
                                                                                                            े
                  नााजियांका में�रुख का रिरोश्तोा रोफत सं बोचपना मेंं �ी तयां �ो   ‘रोास्तं मेंं भाटकते’ हुएँ मेंं लेखिखका मेंर्णाल पां� ना नााजियांका
                                                े
                                                                                 ं
                                                                                               ं
                                                                                                            े
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                  गायांा थाा। रोफत जाबो बोड़ा हुआ उसंना मिवदेशी मेंहिं�ला सं शादेी   की मिबोखरोी जिजादेगाी की व्यूथाा एँव वदेनाा हिंदेखाना का  प्रौयांासं
                                                             े
                                                  े
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                                                                                                         ु
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                                  े
                  करो में�रुख को अकला छोड़ हिंदेयांा । में�रुख  को जाबो इसं   निकयांा �ै –“बोटी की मेंौत ना अचानाक संबो कछ तारो-तारो करो
                                                                                                   ं
                                                                                       े
                  बोात का पता चला तो व� बोड़ी देुखी हुई । में�रुख अपनाी   �ाला �ै।  लेखिखका ना पावकती की जिचता, पीड़ा औरो नाीरोसंता
                                                                       े
                                                                                                               ं
                                    े
                  पीड़ा को व्यू� करोत हुएँ क�ती �ै  –“जिजासंको देसं संाल   क भााव को व्यू� निकयांा �ै। उपन्यासं ‘ऐलाना गाली जिजादेा �ै’ मेंं
                                                                                                     े
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                      े
                  अपना ख्यालं मेंं बोसंायांा, पाँच संाल उन्हीं �ी भालाना मेंं लगाा   भााषाा का सं�जा रूप  प्रौस्तुत करो नाारोी क मेंना की करुर्णा को
                                                                           े
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                                  े
                                    े
                  हिंदेयां थाे। जाख्म भारोना क संाथा हिंदेल क निकसंी कोना मेंं रोफत   हिंदेखाना का प्रौयांासं निकयांा-“स्त्ी का मेंना संमेंझनाा भाी तो औरोत
                                                           े
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                                                                             े
                  भााई भाी देफना �ो गायां थाे”।† लेखिखका नााजिसंरोा शमेंाक ना नााजियांका   आदेमेंी क लिलएँ आसंाना ना थाा। भााषाा का प्रौयांोगा वातावरोर्ण
                                                           े
                                   े
                                                                                               ं
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                  में�रुख  प्यूारो मेंं मिमेंल धोख सं अपना आपको निनाकालना मेंं तो   क  अनासंारो  करोना  की  कला  चद्राकांता  मेंं  व्यूापक  रुप  सं  े
                                               े
                                                                                                       ँ
                                                                                                                  ं
                                                                                         ं
                                                                                                     ु
                                                    े
                  संफल �ो जााती �ै।‡ कमेंला पमित के  जााना के  बोादे मिबो�ु ल   हिंदेखायांी  पड़ती  �ै।  ‘कदेील  का  धआ’  मेंं  हिंदेनाेशनाहिंदेनाी
                                                                                                         े
                                                                                                              े
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                                                          ू
                  अकली �ो गाई।  बोढ़ हिंपता ना उसंक लिलएँ अपनाी परोी जिजादेगाी   �ालमिमेंयांा ना नाारोी व्यूथाा को जिचहिंत्रीत करो संंवदेनाा क रूप को
                                                                                                      े
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                  संमेंहिंपत करो देी । अपनाी गा�रोी संंवदेनाा प्रौकट करोत हुएँ क�त  े  स्पष्ट    निकयांा  �ै-  “निनारोाशा  का  को�रोा  मेंरोे  हृदेयां  मेंं  घनाीभाूत
                                             े
                                                          े
                  �ै –“अधरोी रोात मेंं परोानाी नााव का अकला खिखवयांा निकसंकी   �ोकरो छा गायांा �ालाँनिक बोा�रो हिंदेना की धूप निनाकल रो�ी थाी”।
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                  आसं मेंं पतवारो थाामें आगा बोढ़ता जााता �ै? ध्रुुवतारोे की रोोशनाी   लेखिखका ना  भााषाा औरो संंवदेनाा का संटीक एँव संरोल  मिवश्लेेषार्ण
                                  े
                                                         ं
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                  उसं रोा�  हिंदेखा पाती �ो यांा ना�ं; लनिकना उसंकी आखं मेंं एँक   निकयांा �ै।
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